(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
ये हैं भारतीय इतिहास के गद्दार राजा, जिन्होंने विदेशियों के लिए खोल दिए रास्ते
भारत के इतिहास में ऐसे कई गद्दारोें के नाम दर्ज हैं जिन्होंने गद्दारी करके मुगलों और अंग्रेजों को देश पर कब्जा करने का अधिकार दिया. तो चलिए आज हम ऐसे ही पांच गद्दारों के बारे में बताते हैं.
भारतीय इतिहास में पांच गद्दार राजा ऐसे रहे जिन्होंने न सिर्फ गद्दारी करके दूसरे राजाओं को पराजय का सामना करवाया, बल्कि उनकी गद्दारी के चलते देश पर मुगलों और अंग्रेजों ने लगभग दो सौ सालों तक देश पर राज किया. तो चलिए आज हम ऐसे ही पांच गद्दार राजाओं के बारे में जानते हैैं.
गद्दारी की जब भी बात होती है तब मुंह पर आता है इन राजाओं का नाम
हमारे देश में जब भी गद्दारी की बात होती है तो मुंह पर अचानक कुछ राजाओं के नाम आते हैं. जिन्होंने अपने लालच के चक्कर में गद्दारी करके दूसरे राजाओं को पराजित किया, हालांकि अंग्रेजों ने उनकी गद्दारी का भी उन्हें कोई इनाम तो नहीं दिया बल्कि कई राजाओं को उनकी इस गलती की सजा अपनी मौत से चुकानी पड़ी थी.
जयचंद
इतिहास के पन्नों में जब-जब राजा पृथ्वीराज चौहान का नाम आता है तब-तब उनके नाम के साथ एक गद्दार राजा का नाम भी जरूर लिया जाता है. वो है जयचंद. दरअसल दिल्ली का राज सिंहासन राजा पृथ्वीराज चौहान को मिल गया था, जिससे जयचंद नाखुश था. साथ ही उनकी बेटी संयोगिता को भी पृथ्वीराज चौहान स्यंवर से भगाकर ले गए थेे. जिससे जयचंद काफी नाराज था. ऐसे में उसने बदला लेने का सोचा और जब मोहम्मद गौरी ने जब दिल्ली पर हमला किया तो उस समय जयचंद ने मोहम्मद गौरी का साथ दिया था. हालांकि एक बार तो मोहम्मद गौरी से पृथ्वीराज चौहान युद्ध जीत गए थेे लेकिन दूसरी बार वो जयचंद की गद्दारी के चलते मोहम्मद गौरी से हार गए. हालांकि युद्ध जीतनेे के बाद मोहम्मद गौरी ने जयचंद को भी मार गिराया था.
मानसिंह
पृथ्वीराज चौहान और महाराणा प्रताप में कौन अधिक महान है इसकी चर्चाएं जितनी ज्यादा होती हैं उतनी ही चर्चाएं दोनों के साथ गद्दारी करने वाले मानसिंह और जयचंद की भी होती हैं. उस समय जब महाराणा प्रताप दर-दर भटक रहे थे और देश का आजाद करवानेे के लिए घास की रोटियां खाकर तक गुजारा कर रहे थे उस समय मानसिंह मुगलों का साथ देकर महाराणा प्रताप को पराजित करने की प्लानिंग कर रहा था. जब महाराणा प्रताप और मुगलों की सेना के बीच युद्ध हुआ उस समय मानसिंह ने मुगलों का साथ तो दिया है साथ ही वो उनका सेनापति भी बना. हालांकि बाद में मानसिंह को मारकर महाराणा प्रताप ने उसे उसकी गद्दारी की सजा दे दी थी.
मीर जाफर
जब भी गद्दारी की बात आती है तो मीर जाफर का नाम सबसे पहले लिया जाता है. मीर जाफर ने गद्दारी का ऐसा नमूना पेश किया था कि उसकी हवेेली का नाम ही 'नमक हराम की हवेली' पड़ गया. मीर जाफर सिराजुद्दौला का सेनापति था. उसे नवाब बनने का लालच था. जिसके चलते वो अंग्रेजों से मिल गया और उसने अपने ही नवाब की पीठ में छुरा घोंप दिया. जिसके बाद नवाब की गद्दी पर वो बैठ गया और उसने ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में अंग्रेजों को भारत में पैर पसारने का मौका दे दिया. इसी के बाद भारत में अंग्रेजों के शासन की नींव पड़ी और मीर जाफर का नाम सबसे बड़े गद्दार के रूप में लिया जाने लगा.
महाराजा नरेंद्र सिंह
पटियाला के महाराजा के राजा नरेंद्र सिंह का नाम भी गद्दारों में लिया जाता है. उन्होंने 1857 की क्रांति में सिखों ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत शुरू की थी. राजा नरेंद्र सिंह ने सिखों की इस विद्रोह को दबाने में अंग्रेजों का खूब साथ दिया था. नरेंद्र सिंह ने अंग्रेजों को वो तमाम चीजें उपलब्ध करवाईं जिससे सिखों के आंदोलन को दबाया जा सके.
राजा आभ्भीराज
राजा आभ्भीराज पौरव प्रदेश के राजा पर्वतेश्वर (जिन्हे यवन पोरस कहते थे) के प्रतिद्वन्द्वी राजा थे, जिनका राज्य झेलम के पूर्व में था. उन्हें पोरस से ईर्ष्या थी. वहीं आम्भी कायर भी थे इसी कारण उन्होंने स्वेच्छा से आलक्षेन्द्र की अधीनता स्वीकार कर ली और पोरस से गद्दारी कर उसके विरुद्ध युद्ध में आलक्षेन्द्र का साथ दिया था.
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