ट्रेन के कोच पर बनी ये लाइनें बहुत कुछ बताती हैं, यहां जानिए सब कुछ
जो कोच नीले रंग के होते हैं उन्हें इंटीग्रल कोच कहते हैं. ये कोच तमिलनाडु के चेन्नई वाली फैक्ट्री में तैयार होते हैं. नीले कोच वाली ज्यादातर ट्रेनें 70 से 140 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से चलती हैं
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भारतीय रेलवे से हर रोज लाखों लोग सफर करते हैं, लेकिन इनमें से कितने लोग हैं जो ट्रेन और टिकट को बारिकी से देखते हैं. शायद कुछ सौ या फिर उससे भी कम लोग. लेकिन आज हम आपका ध्यान ट्रेन की बोगियों पर बनी कुछ पीली और सफेद लाइनों की तरफ ले जाना चाहते हैं. ये लाइनें सिर्फ ट्रेन की बोगियों पर डिजाइन बनाने के लिए नहीं होती हैं, बल्कि इनका बहुत जरूरी काम होता है.
क्यों बनी होती हैं ये लाइनें
जब भी आप किसी ट्रेन में यात्रा करने जाएं तो ध्यान से देखें कि आपकी ट्रेन की कुछ बोगियों पर किनारे की ओर पीली और सफेद रंग से कुछ धारियां बनी होंगी. ये धारियां अलग अलग बोगियों पर अलग अलग होती हैं. जैसे अगर नीले कोच पर किनारे की ओर पीले रंग से धारियां बनी हैं तो इसका मतलब होता है कि यह कोच दिव्यांगों और बीमार लोगों के लिए भी है. वहीं अगर इन बोगियों पर सफेद रंग की धारियां बनी हैं तो इसका मतलब है कि ये जनरल कोच है. वहीं जिन ट्रेनों में महिलाओं के लिए कोई कोच आरक्षित होता है तो उस पर हरे रंग से धारियां बनी होती हैं.
नीले और भूरे कोच में अंतर
जो कोच नीले रंग के होते हैं उन्हें इंटीग्रल कोच कहते हैं. ये कोच तमिलनाडु के चेन्नई वाली फैक्ट्री में तैयार होते हैं. नीले कोच वाली ज्यादातर ट्रेनें 70 से 140 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से चलती हैं. वहीं भूरे रंग के कोच जिन ट्रेनों में लगे होते हैं उन्हें मीटर गेज ट्रेन कहा जाता है.
लाल कोच की कहानी क्या है?
आपने कई ट्रेनों में देखा होगा कि उनके कोच का रंग लाल होता है. हालांकि, ऐसी ट्रेने बेहद कम दिखती हैं, क्योंकि इन्हें साल 2000 में जर्मनी से भारत लाया गया था. इन खास डिब्बों को लिंक हॉफमेन बुश कहा जाता है. सबसे बड़ी बात कि ये लोहे से नहीं बल्कि एल्युमीनियम से बने होते हैं. टेक्निकल भाषा में इसे एलएचबी कोच कहते हैं. ये कोच उन्हीं ट्रेनों में ज्यादातर लगाई जाती है जिनकी रफ्तार 160 किलोमीटर प्रतिघंटे से 200 किलोमीटर प्रतिघंटे के बीच होती है.
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