ये है दुनिया का सबसे बड़ा वैक्यूम क्लीनर, एक बार में कम करता है इतना प्रदूषण
प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है.जिसको लेकर अधिकांश देश जूझ रहे हैं और इसको कम करने के लिए रिसर्च कर रहे हैं.लेकिन एक कंपनी ने एक ऐसा मशीन बनाया है,जो वैक्यू क्लीनर की तरफ प्रदूषण को कम करने का काम करेगा.
आज सभी देशों के लिए प्रदूषण एक वैश्विक चिंता है. प्रदूषण को कम करने के लिए अलग-अलग देशों की सरकारें काम भी कर रही हैं. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे वैक्यूम क्लीनर के बारे में बताने वाले हैं, जो दुनिया का सबसे बड़ा वैक्यूम क्लीनर है. जिसके जरिए प्रदूषण को कम करने का प्रयास किया जा रहा है. जानिए आखिर ये वैक्यूम क्लीनर कहां पर है और ये कैसे काम करता है.
वैक्यूम क्लीनर
बता दें कि स्विस फर्म क्लाइमवकर्स नामक कंपनी ने आइसलैंड में अपना डायरेक्ट एयर कैप्चर तकनीक वाला उपकरण किया है. जिसका नाम 'मैमथ' रखा गया है. दरअसल यह उपकरण दुनिया के सबसे बड़े वैक्यूम क्लीनर की तरह काम करके वायमंडल से जलवायु प्रदूषकों को निकालने में सक्षम है. यह पहले बनाए गए क्लाइमवकर्स के ओर्का उपकरण से 10 गुना बड़ा है, जिसका संचालन साल 2021 में हुआ था.
कैसे काम करता है ये मशीन?
जानकारी के मुताबिक इस वैक्यूम क्लीनर द्वारा उपयोग की जाने वाली डीएसी तकनीक हवा से कार्बन निकालकर जमीन के नीचे गहराई में डालती है. जिसे ये फिर उसे पत्थर में बदल देती है. इस तरह से कार्बन को स्थायी रूप से हवा में जाने से रोका जा सकता है. बता दें कि कंपनी ने इस कार्बन रोकने की प्रक्रिया के लिए आइसलैंड की फर्म कार्बफिक्स के साथ साझेदारी की है.
कितनी क्षमता
यह पूरी योजना आइसलैंड की भूतापीय ऊर्जा द्वारा संचालित है. ये मशीन सालाना 36,000 टन कार्बन निकालने में सक्षम है. बता दें कि क्लाइमवकर्स ने जून, 2022 में मैमथ का निर्माण शुरू किया था. इसमें 72 'कलेक्टर कंटेनर' की जगह के साथ एक मॉड्यूलर डिजाइन है, जो हवा से कार्बन निकालता है. वहीं वर्तमान में इस उपकरण में 12 कंटेनर मौजूद है, लेकिन अगले कुछ महीनों में इनके साथ और भी कंटेनर जोड़े जाएगें. इससे मैमथ के पास वायुमंडल से सालाना 36,000 टन कार्बन निकालने की क्षमता होगी. यह लगभग 7,800 गैस से चलने वाली कारों को सड़क से हटाने के बराबर है.
वहीं कंपनी के सह-संस्थापक और सह-CEO जान वुर्जबैकर ने कहा था कि जिस तरह से वे अपने उपकरण का आकार बढ़ा रहे हैं, उस तरह से उनका लक्ष्य साल 2030 तक 300 से 350 डॉलर प्रति टन (लगभग 25,000-29,000 रुपये प्रति टन) तक पहुंचने का लक्ष्य है. वहीं एडिनबर्ग विश्वविद्यालय में कार्बन कैप्चर और स्टोरेज के प्रोफेसर स्टुअर्ट हाजेल्डिन ने कहा कि यह उपकरण जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में मदद कर सकता है.
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