ये है दुनिया का सबसे लंबा वैज्ञानिक रिसर्च, गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड में दर्ज
आविष्कार बिना प्रयोगों के पूरा नहीं हो सकता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला प्रयोग कौन सा है, जो आज भी खत्म नहीं हो सका है. जानिए कब शुरू हुआ था ये रिसर्च.
विज्ञान को लेकर आपने सुना होगा कि जरूरत ही आविष्कार की जननी है. वहीं आविष्कार के लिए और विज्ञान में प्रयोगों का बहुत महत्व है. आपने आज तक बहुत सारे प्रयोगों के बारे में सुना होगा और उन्हें देखा भी होगा. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे प्रयोग के बारे में बताने वाले हैं, जो दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला प्रयोग है.
विज्ञान में प्रयोग
विज्ञान में प्रयोगों का बहुत महत्व है. क्योंकि बिना प्रयोंगों के विज्ञान का निष्कर्ष अधूरा माना जाता है. प्रयोग के आधार पर ही एक सफर आविष्कार हो पाता है, जिसका लाभ दुनिया के हर व्यक्ति को मिलता है. घर में लाइट जलने से लेकर टेलीविजन और इंटनरेट समेत इंसानों द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली सभी जरूरी संसाधनों का आविष्कार अपने समय में किसी ना किसी वैज्ञानिक ने तमाम प्रयोगों के बाद किया है.
प्रयोग में कितना लगता है समय
विज्ञान के प्रयोगों में सभी चीजों को लेकर एक अनुमान लगाया जा सकता है. लेकिन कोई भी व्यक्ति ये नहीं बता सकता है कि उसका प्रयोग कितना लंबा चलेगा. क्योंकि कुछ प्रयोग कम समय में पूरे हो जाते हैं, वहीं कुछ प्रयोगों में सालों साल और सदियां भी लग जाती है. ऐसे ही आज हम आपको एक ऐसे प्रयोग के बारे में बताने वाले हैं, जिसमें 100 साल से ज्यादा का वक्त लग चुका है.
कब शुरू हुआ था ये प्रयोग
बता दें कि यह खास प्रयोग ऑस्ट्रेलिया के भौतिकविद थॉमस पार्नेल ने साल 1930 में शुरू किया था. इन्होंने इस दौरान रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले पदार्थों की चौंकाने वाले गुण दिखाना चाहते थे. इस प्रयोग में उन्होंने पिच ड्रॉप एक्सपेरीमेंट के लिए पिच नामक एक अत्यधिक चिपचिपे टार जैसे पदार्थ का इस्तेमाल किया था. दरअसल ये पिच ड्रॉप पानी से 100 बिलियन गुना अधिक चिपचिपा और शहद से दो मिलियन गुना अधिक चिपचिपा होता है. हालांकि यह पदार्थ ठोस प्रतीत होता है, लेकिन वास्तव में तरल होता है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हथौड़े से मारने पर यह कांच की तरह टूट भी जाता है.
1930 में शुरू किया था रिसर्च
ऑस्ट्रेलिया के भौतिकविद थॉमस पार्नेल ने रिसर्च की शुरूआत में पहले पिच को गर्म किया था और इसे कांच की फ़नल में डाला था. इसके बाद इसे तीन साल तक ठंडा होने के लिए छोड़ दिया था. जिसके बाद 1930 में उन्होंने पिच को धीरे-धीरे टपकने देने के लिए फ़नल के निचले हिस्से को काट दिया था. आपको जानकर हैरानी होगी कि ये वैज्ञानिक रिसर्च इतना स्लो है कि तब से आज तक फ़नल से केवल नौ बूंदें ही गिरी हैं. बता दें कि रिसर्च के प्रमुख पार्नेल और प्रोफेसर जॉन मेनस्टोन कभी भी एक बूंद को गिरते हुए नहीं देख पाये थे.
जानिए कब गिरी बूंदें?
ये प्रयोग गिनीज बुक ऑप वर्ल्ड रिकॉर्ड में अब तक के सबसे लंबे वैज्ञानिक प्रयोग के तौर पर नाम दर्ज है. इस अनूठे प्रयोग में पहली बूंद 1938 में गिरी, दूसरी 1946 में, तीसरे 1954, चौथी 1962 में, पांचवी 1970 में, छठी 1979 में, सातवी 1988 में, 8वीं 2000 में और 9वीं 2014 में गिरी थी. बता दें कि 2030 आते-आते इस प्रयोग को 100 साल पूरा हो जाएंगे।
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