'घाघरा चोली' पहनकर दरबार में आता था ये मुगल शासक, मुर्गों की लड़ाई देखकर हो जाता था खुश
मुहम्मद शाह रंगीला के बारे में कहा जाता है कि वह युद्ध और विस्तारवाद की नीति में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखता था. यही वजह रही कि जब मराठों ने दिल्ली पर हमला किया तो उसने नवाबों को आगे कर दिया.
मुगलों ने भारत पर कई वर्षों तक राज किया. इस शासनकाल के दौरान कई ऐसे मुगल शासक हुए, जिनके बारे में ऐसी ऐसी कहानियां प्रचलित हैं, जिन्हें सुन कर आप हैरान हो जाएंगे. ऐसी ही एक कहानी है मुगल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला के बारे में. मुहम्मद शाह रंगीला 1719 से 1748 तक शासक रहे, लेकिन इस बीच उन्होंने कई ऐसी अजीबोगरीब चीजें कि जिसके लिए इतिहास में उनका नाम दर्ज हो गया. हालांकि, इन कारनामों का बहादुरी से दूर दूर तक नाता नहीं है. चलिए आपको बताते हैं घाघरा चोली पहनने वाले इस मुगल बादशाह के बारे में, जिसे युद्ध लड़ने से ज्यादा शौक मुर्गे लड़ाने का था.
कह बना 'रंगीला' बादशाह
साल 1707 में जब औरंगजेब की मौत हुई तो दिल्ली बिना बादशाह के हो गई. इस दौरान 1719 तक दिल्ली को कई बादशाह मिले, लेकिन कोई टिक ना सका. फिर 27 सितंबर 1719 को बादशाह की गद्दी पर बैठा रौशन अख्तर उर्फ़ मुहम्मद शाह जिसे बाद में मुहम्मद शाह रंगीला के नाम से जाना गया. मुहम्मद शाह रंगीला जब गद्दी पर बैठा तो उसकी उम्र महज 16 साल थी.
मुर्गे लड़ाने का शौकीन था
जब दिल्ली पर औरंगजेब का शासन था तो उस वक्त कड़े इस्लामी कानून लागू थे, इस वजह से रियासत के कलाकार मारे मारे फिर रहे थे. लेकिन जब मुहम्मद शाह रंगीला बादशाह बना तो उसने कई पाबंदियों को हटा दिया, जिसके बाद दिल्ली में फिर से संगीत और कला को बढ़ावा मिला. मुहम्मद शाह रंगीला के बारे में कहा जाता है कि वह युद्ध और विस्तारवाद की नीति में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखता था. यही वजह रही कि जब मराठों ने दिल्ली पर हमला किया तो उसने युद्ध में खुद जाने की बजाय नवाबों को आगे कर दिया. कहते हैं कि जब उधर युद्ध हो रहा था, तो उस वक्त मुहम्मद शाह रंगीला अपने महल में मुर्गों की लड़ाई देख कर खुश हो रहा था.
औरतों वाले कपड़े पहनने का शौक
मरकए-दिल्ली नाम की एक किताब जिसे कुली खान ने लिखा था, उसमें जिक्र है कि मुहम्मद शाह रंगीला को शेरों शायरी और संगीत से बहुत लगाव था. इस दौरान मुगलों के पहनावे और भारतीय संगीत में भी काफी बदलाव आया. वहीं इस शासक के बारे में कहा जाता है कि इसे औरतों के कपड़े पहनने का बहुत शौक था, इसलिए कई बार दरबार में भी ये औरतों वाले कपड़े पहन कर आ जाता था.
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