त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड विधानसभा चुनाव नतीजों को लेकर चर्चा में है. 3 राज्यों के चुनाव के नतीजे जारी हो रहे हैं और तीनों राज्यों में अलग-अलग राजनीतिक समीकरण देखने को मिल रहे हैं. आप भी नॉर्थ ईस्ट के इन तीनों राज्यों की राजनीति को समझने की कोशिश कर रहे होंगे. तीनों प्रदेश की बदलती राजनीतिक स्थितियों के बीच हम आपको बताते हैं कि आखिर तीनों राज्यों का इतिहास क्या है. दरअसल, भारत के ये तीनों राज्य आजादी के वक्त राज्यों की गिनती में नहीं थे और भारत के आजाद होने के बाद करीब 20 से ज्यादा सालों के बाद राज्य बने. तीनों राज्यों को कई साल बाद राज्य का दर्जा मिला.
ऐसे में जानते हैं इन तीनों राज्यों के राज्य बनने की क्या कहानी है और राज्य का दर्जा बनने से पहले उनका क्या स्टेट्स था. तो जानते हैं इन राज्यों से जुड़ी खास बातें...
त्रिपुरा
त्रिपुरा को 21 जनवरी 1972 को राज्य का दर्जा मिला था. बता दें कि साल 1972 में नॉर्थ ईस्ट में कई जगहों को पूरे राज्य का दर्जा मिला था. इन राज्यों में त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर आदि शामिल हैं. उस दौरान नॉर्थ ईस्टर्न रिजन री-ऑर्गेनाइजेशन एक्ट, 1971 के तहत उन्हें राज्य का दर्जा मिला. त्रिपुरा की रियासत के अंतिम शासक किरीत बिक्रम किशोर माणिक्य बहादुर देबबर्मा थे और 1949 तक उन्होंने शासन किया था. इसके बाद 9 सितंबर 1949 को रियासत को भारत गणराज्य में विलय कर दिया गया. इसके बाद 1 जुलाई 1963 को त्रिपुरा एक केंद्र शासित प्रदेश बना और 21 जनवरी 1972 को इसे एक पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ.
मेघालय
मेघालय भी 21 जनवरी 1972 को भारत का राज्य बना था. अगर मेघालय के 1972 के पहले की बात करें तो मेघालय पहले असम का हिस्सा हुआ करता था. लेकिन, जब 1972 में कई राज्य बनाए गए तो मेघालय को असम से अलग कर स्वतंत्र राज्य का दर्जा दिया गया.
नगालैंड
जब देश आजाद हुआ तो नगालैंड के नगाओं ने खुद को भी आजाद घोषित कर दिया और वो भारत सरकार के साथ नहीं आए. हालांकि, समय के साथ नगाओं में भी उथल-पुथल हुई और साल 1957 में वहां स्थानीय नेताओं और केंद्र सरकार में सहमति बनी. इसके बाद 1960 में यह तय हो गया है कि नगालैंड को देश का हिस्सा होना चाहिए. फिर 1963 में 1 दिसंबर को यहां कोहिमा को राज्य की राजधानी माना गया और अलग राज्य बन गया.
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