Latitude Lines: आप में से लगभग सभी ने यह बात सुनी होगी कि धरती कर्क रेखा से दो भागों में बंटी है. कर्क रेखा भारत के बीचो-बीच से गुजरती है. हालांकि दुनिया को सूर्य की रोशनी और तापमान के अनुसार कर्क रेखा, मकर रेखा और विषुवत रेखा में बांटा गया है. लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि अगर कर्क रेखा और मकर रेखा धरती पर हैं तो हमें दिखाई क्यों नहीं देती. हम आपके इस सवाल का जवाब देंगे-


कर्क रेखा और मकर रेखा के बारे में


इंसान ने अपनी सुविधाओं के लिए इन रेखाओं को काल्पनिक रूप से खींचा है. यह रेखाएं प्राकृतिक रूप से धरती पर नहीं पायी जाती हैं बल्कि इंसान द्वारा काल्पनिक रूप से खींची गई है. भूमध्य रेखा धरती को दो हिस्सों में बांटती हैं जिसे ज़ीरो डिग्री अक्षांश रेखा भी कहते हैं. 


भूमध्य रेखा के ही उत्तर और दक्षिण को उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध कहा जाता है. जहां कर्क रेखा धरती के उत्तरी गोलार्द्ध में खींची गयी है जिसे 23.5 डिग्री उत्तरी अक्षांश भी कहते है. इसी तरह मकर रेखा को धरती के दक्षिणी गोलार्द्ध में खींचा गया है जिसे  23.5 डिग्री दक्षिणी अक्षांश कहा जाता है.


क्यों खींची गई कर्क और मकर रेखा


इन रेखाओं को खींचने के पीछे यह कारण है कि इससे धरती को समझने में आसानी होती है. धरती को समझने के लिए इसे सिर्फ अक्षांश रेखा में ही नहीं बल्कि देशांतर रेखा में भी बांटा गया है. इन रेखाओं के द्वारा ही धरती पर कब कहा कितना तापमान पाया जाता है और दिन- रात की अवधि कितनी होती है यह पता करना आसान हुआ है. सूर्य की रोशनी पूरे साल भूमध्य रेखा पर सीधी पड़ती है इसलिए वहां दिन और रात 12 घंटे के होते हैं.


जबकि कर्क और मकर रेखा पर साल में एक बार सूर्य की रोशनी सीधे पड़ती है. गर्मी के मौसम में भूमध्य रेखा से सूर्य उत्तर की ओर बढ़ता है जिससे उत्तरी गोलार्द्ध में दिन की अवधि बड़ी और रात छोटी होती है जिस कारण 21 जून को सूर्य की रोशनी कर्क रेखा पर सीधी पड़ती है. जबकि ठंड के शुरू होने के साथ ही सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध से दक्षिणी गोलार्द्ध की जाने लगता है जिससे दक्षिणी गोलार्द्ध में दिन बड़ा और रात छोटी होने लगती है. इसी कारण 22 दिसंबर को सूर्य की रोशनी सीधे मकर रेखा पर पड़ती है. मौसम में बदलाव का भी यह एक महत्वपूर्ण कारण है.


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