सोचिए एक रात आप सोएं और सुबह उठें तो आपको पता चले कि आपके देश का एक पूरा शहर एक चुटकी तबाह हो गया. 26 अप्रैल 1986 को यूक्रेन के लोगों के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था. दरअसल, इस तारीख को यू्क्रेन के एक शहर प्रिप्यात में स्थित चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र में विस्फोट हो गया. ये विस्फोट इतना भयानक था कि इसने पूरे शहर को एक चुटकी में मुर्दा कर दिया. चलिए आज आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं.


चेर्नोबिल आपदा


26 अप्रैल 1986. इस दिन 20वीं सदी की सबसे भीषण और विनाशकारी परमाणु आपदाओं में से एक, चेर्नोबिल आपदा घटी थी. ये इतनी भयावह थी कि इसे दुनिया का सबसे बुरा परमाणु हादसा कहा जाता है. दरअसल, यह घटना यूक्रेन (तब सोवियत संघ का हिस्सा) के प्रिप्यात नाम के छोटे से शहर के पास स्थित चेर्नोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र के चौथे रिएक्टर की वजह से हुई थी. इस हादसे के बाद न केवल सोवियत संघ, बल्कि पूरी दुनिया परमाणु ऊर्जा के सुरक्षित उपयोग पर गंभीर चिंता में पड़ गई थी.


घटना वाली रात


चेर्नोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र में 25 अप्रैल 1986 को रात के करीब 1 बज कर 23 मिनट पर एक नियमित सुरक्षा परीक्षण के दौरान चौथे रिएक्टर में अचानक विस्फोट हो गया. यह विस्फोट इतना बड़ा था कि उसने रिएक्टर की इमारत की छत को उड़ा दिया और भारी मात्रा में रेडियोएक्टिव पदार्थ वायुमंडल में फैल गए. इस हादसे की वजह से रिएक्टर का कोर पूरी तरह से बर्बाद हो गया और आसपास के क्षेत्रों में रेडियोएक्टिव तत्व फैल गए. हादसे की वजह से पहले दो कर्मचारियों की मौत हुई, फिर परमाणु संयंत्र में मौजूद और कर्मचारियों की मौत हो गई. ये सभी लोग रेडिएशन का शिकार हो गए थे. धीरे-धीरे ये बढ़ता गया और कई लोग मारे गए.


कैंसर का प्रकोप


यूएस न्यूक्लियर रेगुलेटरी कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक, चेर्नोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र में हुए विस्फोट की वजह से जो रेडियोएक्टिव पदार्थ फैले उनकी वजह से इस संयंत्र में काम करने वाले लगभग 28 कर्मचारी 4 महीनों के भीतर मर गए. सीधे तौर पर इस हादसे की वजह से कुल 31 लोगों की मौत हुई थी. लेकिन ये सिलसिला यहीं नहीं रुका. इस हादसे ने दशकों तक लोगों को बीमार किया.


एक रिपोर्ट के मुताबिक, चेर्नोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र हादसे की वजह से जो रेडियोएक्टिव पदार्थ हवा में फैले उसकी वजह से 1991 से 2015 तक इस शहर में थाइरॉयड और कैंसर के लगभग 20 हजार मामले दर्ज किए गए. सबसे बड़ी बात की इनमे से ज्यादातर मरीजों की उम्र 18 साल से कम थी.


वहीं नेशनल साइंस रिसर्च लेबोरेटरी की रिपोर्ट के मुताबिक, इस हादसे की वजह से जो रेडियोएक्टिव पदार्थ हवा में फैले उसकी वजह से चेर्नोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र के आस-पास मौजूद सारे पेड़ मर गए. पूरा जंगल वीरान हो गया और बाद में इस जंगल को रेड फॉरेस्ट कहा जाने लगा. ऐसा इसलिए क्योंकि रेडिएशन की वजह से बाद में यहां के पेड़ों का रंग लाल पड़ गया था.


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