Budget 2023: आज के बाद से आपको काफी सुनने को मिलेगा 'श्री अन्न', जान लीजिए ये क्या है?
इस तरह के अनाज में विटामिन, खनिज, फाइबर और दूसरे पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं. बजट में श्रीअन्न की पैदावार को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू करने की बात कही गई.
Union Budget 2023: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वार्षिक बजट 2023-24 के अपने भाषण में खासतौर पर कृषि और किसानों के लिए कई योजनाओं का जिक्र किया. जिनमें एक योजना थी 'श्री अन्न' योजना. इस योजना पर सभी का ध्यान विशेषतौर पर गया. देश में मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए श्री अन्न योजना की शुरुआत करने की बात कही गई. उन्होंने मिलेट्स यानी मोटे अनाजों के लिए श्री अन्न शब्द का इस्तेमाल किया था. यानी इस योजना के तहत सरकार की तरफ से मोटे अनाज की पैदावार को बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा. इसके लिए भारतीय मिलेट्स संस्थान का गठन भी किया जाएगा. श्री अन्न योजना के तहत किसानों को मोटे अनाज के उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा.
क्या होते हैं 'श्री अन्न'?
यहां मोटे अनाज यानी मिलेट्स को श्री अन्न कहा जा रहा है. इस तरह के अनाज में विटामिन, खनिज, फाइबर और दूसरे पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं. वित्त मंत्री ने कहा कि भारत दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा मिलेट्स का एक्सपोर्टर है. भारत में ज्वार, रागी, बाजरा, कुट्टू, रामदाना, कंगनि, कुटकी, कोडो, छीना और सामा जैसे कई श्री अन्न का उत्पादन होता है. ये सभी मोटे अनाज स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होते हैं. सरकार भारत को श्री अन्न का ग्लोबल हब बनाने की तैयारी में है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मिलेट रिसर्च, हैदराबाद इंटरनेशनल लेवल पर मिलेट्स से संबंधित रिसर्च टेक्नोलॉजी और इसके बेहतर उत्पादन के तरीकों को बताता रहा है. अतः इस संस्थान का इस क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान रहा है.
क्यों खास है श्री अन्न?
मिलेट्स क्रॉप खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है. हाल ही में विदेशी मंत्री एस जयशंकर ने भी कोरोना महामारी, जलवायु परिवर्तन और अन्य चुनौतियों के बीच मिलेट्स के महत्व का जिक्र किया था. एशिया और अफ्रीका मिलेट्स के प्रमुख उत्पादक और उपयोगकर्ता देशों में से एक हैं. भारत के अलावा, नाइजर, सूडान और नाइजीरिया भी मिलेट्स के प्रमुख उत्पादक देश हैं.
मिलेट क्रॉप्स की खासियत?
मिलेट्स या श्री अन्न की फसलों को कम पानी की जरूरत होती है. उदाहरण के लिए जहां गन्ने के पौधे को 2100 मिलीमीटर पानी की जरूरत पड़ती है. वहीं, बाजरा के एक पौधे को पूरे जीवनकाल में केवल 350 मिलीमीटर पानी ही चाहिए होता है. जहां, बाकी फसलें पानी की कमी होने पर बर्बाद हो जाती हैं, वहीं, मोटा अनाज की फसल अगर खराब भी हो जाती है तो वह पशुओं के चारे के काम आ सकती हैं.
बाजारा का 41 प्रतिशत उत्पादन भारत में
बाजरे के वैश्विक उत्पादन में लगभग 41 प्रतिशत की अनुमानित हिस्सेदारी भारत की रहती है. फूड एंड एग्रीकल्चरल ऑर्गेनाइजेशन (FAO) के अनुसार , साल 2020 में बाजरे के वैश्विक उत्पादन 30.464 मिलियन मीट्रिक टन में 12.49 मिलियन मीट्रिक टन की हिस्सेदारी अकेले भारत की थी. पिछले वर्ष भी भारत ने बाजरा उत्पादन में 27 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज कराई. भारत राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात तथा मध्य प्रदेश बाजरा प्रमुख उत्पादक राज्य हैं. अनुमानों के अनुसार, साल 2025 तक बाजरा उत्पादन का बाजार मूल्य 9 अरब डॉलर से बढ़कर 12 अरब डॉलर हो जाएगा.
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