उत्तर प्रदेश के इस गांव में मोबाइल तो दूर पंखा तक नहीं, जानिए क्या करते हैं लोग?
मोबाइल और बिजली हमारी जिंदगी का जरुरी हिस्सा बन चुके हैं. ऐसे में क्या आप यूपी के एक ऐसे गांव के बारे में जानते हैं जहां लोग अब भी इन चीजों से दूर रह रहे हैं?
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समय के साथ दुनियाभर में बदलाव होता जा रहा है. पहले बिजली आई फिर पंखे और फिर कूलर, एसी जैसी सुविधाएं. मोबाइल तो हर व्यक्ति की लत बन चुका है, जिसके बिना कोई कुछ देर भी नहीं रह सकता. ऐसे में क्या आप हमारे ही देश के एक ऐसे गांव के बारे में जानते हैं जहां अब भी लोग उसी पुराने जमाने में मस्ती से अपनी जिंदगी जी रहे हैं. इस गांव में न बिजली है न ही पंखे. न ही गांव में कोई मोबाइल का इस्तेमाल करता है. इस गांव में बाहर से मोबाइल ले जाना भी मना है.
पुराने दौर में जिंदगी जी रहे इस गांव के लोग
दरअसल हम टटिया गांव की बात कर रहे हैं. ये उत्तरप्रदेश में मौजूद वृंदावन के पास स्थित है. इस गांव के लोग अब भी पुराने जमाने में जीवन यापन कर रहे हैं. यहां लोग एसी, कूलर के बारे में भी नहीं जानते, बल्कि अब भी लोग डंडी से खींचकर चलाने वाले पंखे का इस्तेमाल करते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस गांव में बिजली की बिल्कुल सुविधा ही नहीं है. ऐसे में लोग पुराने जमाने में जलाए जाने वाले लैंपों का अब भी यहां इस्तेमाल करते हैं. इस गांव की महिलाएं हर समय अपना सिर ढंक कर रहती हैं और पूरा गांव पूजा-पाठ में लगा रहता है.
बाहर से भी गांव में कोई व्यक्ति नहीं ले जा सकता मोबाइल
कहा जाता है जब वृंदावन के सातवें आचार्य ललित किशोरी ने निधिवन छोड़ा था, उस समय वो यहीं पर ध्यान करने के लिए बैठ गए थे. उस समय ये गांव खुला जंगल हुआ करता था, लिहाजा भक्तों ने आचार्य को बचाने के लिए उनके आसपास बांस और डंडों से छत और घेरा तैयार कर दिया. इस जगह पर बांस की डंडियों को टटिया करते हैं. यही वजह है कि इस गांव का नाम भी टटिया पड़ गया. यहां जाने पर लोग आपको अक्सर भजन किर्तन में डूबे नजर आएंगे. यहां पर नीम, कदंब, पीपल के काफी पेड़ मौजूद हैं और उनके पत्तों पर भी राधा नाम उभरा हुआ नजर आता है. इस गांव में साधू संत भोजन नहीं बनाते और न ही दक्षिणा लेते हैं, बल्कि उनके लिए गांव के घरों से खाना भेजा जाता है. तकनीक के इस दौर में भी टटिया एक अलग ही जगह दिखाई पड़ती है. जहां भक्ति और साधना का अलग ही महत्व है.
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