उत्तराखंड के कुमाऊं डिवीजन में पिछले पांच दिनों से लगी आग लगातार बढ़ रही है. इस आग को बुझाने के लिए स्थानीय प्रशासन से लेकर सेना और एनडीआरएफ की टीम जुटी हुई है. लेकिन इसके बावजूद अभी तक आग पर काबू नहीं पाया गया है. आज हम आपको बताएंगे कि खासकर उत्तराखंड के जंगलों में किन पेड़ों के कारण आग लगती है. 


इन पेड़ों के कारण आग


गर्मी के मौसम में खेत और जंगलों में आग लगना एक सामान्य घटना होती है. लेकिन आखिर हर साल सबसे ज्यादा आग उत्तराखंड के जगलों में ही क्यों लगती है. आज हम आपको इसके पीछे की वजह बताएंगे. दरअसल उत्तराखण्ड के जंगलों में चीड़ के पेड़ बहुतायत में हैं. अग्रेजों ने इन्हें तारकोल बनाने के लिए पूरे राज्य में लगाया था. इनकी जितनी उपयोगिता है, उतना ही इनसे नुकसान भी है. चीड़ के पेड़ में लीसा नामक एक तरल पदार्थ निकलता है. वहीं इनकी पत्तियों में भी तेल का अंश बहुत ज्यादा होता है. इन्हें स्थानीय भाषा में पीरूल बोलते हैं. पत्तियों में तेल की मात्रा ज्यादा होने के कारण न सिर्फ ये जल्दी आग पकड़ती हैं, बल्कि आग लगने की सूरत में ये भयावह भी होती है. इसके अलावा पत्तियों से उठी आग पेड़ों को भी अपनी चपेट में ले लेती है. वहीं दुर्गम और पहाड़ी रास्तों के कारण आग बुझाना काफी मुश्किल हो जाता है. 


भस्मासुर जैसी ये पत्तियां


आपने शिव महापुराण के भस्मासुर नामक राक्षस की कहानी सुनी होगी. जिसे भगवान शिव का वरदान प्राप्त था कि वह जिस पर भी हाथ रखेगा, वो भस्म हो जाएगा. चीड़ पेड़ों के ये पत्ते भी बिल्कुल ऐसे ही हैं. इन पत्तों में ज्वलनशील तेल की मात्रा अधिक होने के कारण ये बहुत तेजी से आग फैलाते हैं. ये पत्ते जहां-जहां तक उड़कर जाते हैं, वहां पर आग तेजी से फैलती है. हालांकि इसको बुझाने का प्रयास किया जा रहा है. 


आग बुझाने का प्रयास जारी


बता दें कि वायुसेना हेलीकॉप्टर के जरिए आग बुझाने का प्रयास कर रही है. जानकारी के मुताबिक एमआई-17वी एम हेलिकॉप्टर में पानी स्प्रे करने का उपकरण लगा होता है. इसके अलावा इसमें एक बांबी बकेट होता है. इस बकेट की क्षमता 5000 लीटर टैंक की बताई गई है. भारत में पिछले कुछ दशकों में जंगलों की आग बुझाने के लिए हेलिकॉप्टर काफी मददगार साबित हुए हैं. 


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