भारत के इतिहास में आपने मराठा साम्राज्य की वीरगाथा सुनी होगी, क्योंकि भारत का इतिहास मराठा और छत्रपति शिवाजी महाराज के बिना पूरा नहीं हो सकता है. आज हम आपको उन्हीं वीर छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे की संभाजी महाराज की वीरता की कहानी बताएंगे, जब उन्होंने मृत्यु स्वीकार किया था, लेकिन इस्लाम नहीं कबूला था.
क्यों चर्चा में हैं संभाजी महाराज?
बता दें कि अभिनेता विक्की कौशल की फिल्म 'छावा' की वजह से वीर मराठा छत्रपति संभाजी राजे की वीरता के किस्से एक बार फिर से चर्चा में आ गये हैं. गौरतलब है कि 3 अप्रैल, 1680 को शिवाजी महाराज के निधन के बाद संभाजी ने ही मराठा साम्राज्य की सत्ता संभाली थी. सत्ता संभालने के बाद संभाजी ने भी वीरता के साथ मुगलों का सामना किया था.
औरंगजेब और संभाजी महाराज का आमना-सामना
इतिहासकारों के मुताबिक 1682 के समय में औरंगजेब की अगुवाई में मुगल सेना दक्षिण पर कब्जा करने के लिए तेजी से आगे बढ़ रही थी. दरअसल औरंगजेब की योजना उस समय मराठा साम्राज्य को चारों ओर से घेरने की थी. हालांकि दूसरी तरफ छत्रपति संभाजी भी अपनी सेना के साथ मुगलों को जवाब देने के लिए तैयार थे. औरंगजेब की सेना के हमला करने के बाद संभाजी ने अपना गुरिल्ला तकनीक का इस्तेमाल करके औरंगजेब को भागने पर मजबूर कर दिया था.
मुगलों को हराया
मराठा सेना ने मुगलों को कई अलग-अलग मौकों पर हराया था. ऐसे ही बुरहानपुर में भी मराठा सेना ने मुगलों पर हमला करके उनको वहां से भागने पर मजबूर किया था. मराठा सेना की वीरता के कारण ही 1685 तक मुगल किसी भी मराठा साम्राज्य को हासिल नहीं कर पाई थी. इतिहासकारों के मुताबिक 1687 में जब मुगलों ने हमला किया था, उस समय मराठाओं ने मुंहतोड़ जवाब दिया था. हालांकि इस युद्ध में संभाजी के सेनापति और विश्वासपात्र हंबीरराव मोहिते शहीद हो गये थे.
संभाजी के खिलाफ साजिश
संभाजी महाराज उस समय अलग-अलग मोर्चों पर पुर्तगालियों, निजाम और मुगलों का सामना कर रहे थे. इसी बीच उन्हें संगमेश्वर में एक अहम बैठक के लिए जाना था. जिसके लिए 31 जनवरी, 1689 को संभाजी रायगढ़ के लिए निकलने वाले थे. इस दौरान उनके अपने रिश्तेदार गनोजी शिर्के और कान्होजी शिर्के ने मुगलों के साथ मिलकर संभाजी को फंसाने की एक योजना बनाई थी. बता दें कि गनोजी शिर्के संभाजी की पत्नी येसुबाई के भाई थे. वहीं कान्होजी और गनोजी रिश्ते में भाई लगते थे.
मुगलों के साजिश का शिकार
बता दें कि मुगल सेना के सरदार मकरब खान ने गनोजी शिर्के से मुलाकात की थी. इस दौरान उसने लालच देते हुए कहा था कि अगर वह संभाजी को पकड़ने में उनकी मदद करता है, तो वह दक्षिण का आधा राज्य उन्हें सौंप देंगा. गनोजी शिर्के मुगलों की इस साजिश में फंस गए थे. ऐसे में जब संभाजी संगमेश्वर ने रायगढ़ के निकले थे, तो उसने उन्हें रास्ते में ही फंसाने की योजना बना ली थी. इस दौरान संभाजी जैसे ही निकलने लगे तो गनोजी ने कहा कि इस इलाके के लोग उनका सम्मान करना चाहते है, इसके लिए उन्हें रास्ते में कुछ देर रुकना होगा.
मुगलों के कब्जे में संभाजी
अपने इलाके के लोगों से मिलने के लिए संभाजी तैयार हो गए थे. इस दौरान उन्होंने अपनी सेना की एक बड़ी टुकड़ी रायगढ़ के लिए रवाना कर दी थी, वहीं अपनी सुरक्षा के लिए सिर्फ 200 सैनिकों को ही साथरखा था. जिसके बाद योजना के तहत इस बात की जानकारी गनोजी ने तुरंत मुगल सेना के सरदार मुकरब खान को पहुंचा दी थी. सूचना मिलते ही मुकरब अपने 500 सैनिकों के साथ संभाजी पर हमला करने के लिए तैयार था.
हालांकि संभाजी रायगढ़ के लिए जिस रास्ते का इस्तेमाल कर रहे थे, उनके बारे में सिर्फ मराठों को ही पता था. लेकिन ये रास्ता इतना संकीर्ण था कि यहां से एक बार में केवल एक ही सैनिक निकल सकता था. मुगलों ने मराठा सैनिकों के इस रास्ते से निकलते ही आगे जाकर उन्हें बंदी बना लेते थे या उनकी हत्या कर देते थे. इस दौरान मुगल सेना ने छत्रपित संभाजी को गिरफ्तार कर लिया था. दरअसल औरंगजेब का आदेश था कि संभाजी को जिंदा ही पकड़कर लाना है. जिसके बाद 1 फरवरी, 1689 को संभाजी को बेड़ियों में बांधकर तुलापुर किले लाया गया था, यहां औरंगजेब ने उनपर इस्लाम कबूलने के लिए दबाव बनाना शुरू किया था.
मौत स्वीकार लेकिन इस्लाम नहीं
इतिहासकारों के मुताबिक औरंगज़ेब ने शिवाजी के बेटे को बंदी के रूप में अपने सामने आते देखा था, तो सज्दे में ज़मीन पर झुक गया था. वहीं जब संभाजी से औरंगज़ेब के सामने सिर झुकने के लिए कहा गया था, तो संभाजी ने ऐसा करने से इनकार करते हुए औरंगज़ेब को घूरना शुरू किया, जिसके बाद औरंगज़ेब ने उसी रात संभाजी की आँखें निकालने का आदेश दे दिया था. इतना ही नहीं औरंगज़ेब ने उन्हें इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दिया था, लेकिन संभाजी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था. जिसके बाद औरंगज़ेब के आदेश पर उनकी ज़ुबान खींच ली गई थी. जानकारी के मुताबिक इसके बाद संभाजी के सामने बादशाह का प्रस्ताव फिर से दोहराया गया था, लेकिन फिर संभाजी ने एक काग़ज़ मंगवाया और उस पर अपना जवाब लिखा, 'बिल्कुल नहीं, अगर बादशाह अपनी बेटी भी मुझे दे, तब भी नहीं."
औरंगजेब का क्रूर व्यवहार
बता दें कि 11 मार्च, 1689 को एक-एक करके संभाजी के सारे अंग काट दिये गये थे. इसके बाद अंत में उनका सिर धड़ से अलग कर दिया गया था. इतना ही नहीं औरंगजेब ने क्रूरता का सबसे बुरा उदाहरण पेश करते हुए छत्रपति संभाजी के कटे हुए सिर को दक्षिण के प्रमुख नगरों में घुमाया गया था. जिसके बाद शिवाजी के छोटे बेटे राजराम को राजा बनाया गया था. लेकिन सन् 1699 में सिर्फ़ 30 साल की उम्र में राजाराम का निधन हो गया था.
ये भी पढ़ें:स्पेस में क्यों नहीं भेजा जाता है पीने का पानी? जानें क्यों पेशाब फिल्टर कर पीते हैं एस्ट्रोनॉट्स