पृथ्वी और इस पर मौजूद वायरस का अस्तित्व इंसानों के अस्तित्व से पहले से है. यहां कई ऐसे वायरस मौजूद हैं जो अगर इंसानों के बीच आ गए तो ऐसी तबाही मचेगी कि उसे रोकना असंभव हो जाएगा. दरअसल, डायनासोर के युग के बाद जब पृथ्वी पर हिमयुग आया तो कई घातक वायरस बर्फ में दब गए. खासतौर से आर्कटिक में. वैज्ञानिकों का मानना है कि आर्कटिक में लाखों घातक वायरस सो रहे हैं, जैसे ही जलवायु गर्म होगी और इससे वहां का बर्फ पिघलेगा तो बर्फ के पानी के साथ वायरस भी इंसानों तक पहुंचेंगे और फिर तबाही मचाएंगे. परेशानी की बात ये है कि इंसान अभी तकनीकी रूप से इतने तैयार नहीं हैं कि वो ऐसे वायरस से लड़ सकें. कोरोना ने इस बात का सुबूत हम सबके सामने रख दिया है.


क्या कह रहे हैं वैज्ञानिक?


वैज्ञानिकों का दावा है कि आर्कटिक के पर्माफ्रॉस्ट में कई घातक वायरस दफन हैं. ये जलवायु के गर्म होने से जब बर्फ पिघलेगी तो जिंदा हो सकते हैं. दरअसल, वैज्ञानिकों का दावा इसलिए भी ठोस है क्योंकि साल 2015 में इन्हीं में से एक जॉम्बी वायरस को जिंदा किया गया था. ये वायरस भी उस बर्फ में लाखों सालों से दफन था. आपको बता दें पीएलओएस कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में एक प्राचीन वायरस और एक आधुनिक बैक्टीरिया के प्रभाव को डिजिटल रूप से तैयार किया, इस रिसर्च टीम ने पता लगाया कि वायरस ने जीवाणु कम्युनिटी की प्रजातियों की विविधता को कैसे प्रभावित किया. इसी के आधार पर दावा किया जा रहा है कि अतीत में जो वायरस लाखों साल पहले बर्फ में दफन हो गए थे, अब उनके लिए पृथ्वी पर फिर से पारिस्थितिक तंत्र ऐसा बन रहा है कि वो जिंदा हो सकते हैं.


नासा भी कर रहा है रिसर्च


आर्कटिक के क्षेत्र में पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से पृथ्वी पर होने वाले प्रभावों को समझने के लिए बीते कुछ वर्षों में कई शोध हुए हैं. इन्हीं में से एक शोध नासा ने भी किया है. दरअसल, जनवरी 2022 में नासा के एक रिसर्च में पता चला कि अचानक से पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से जो कार्बन रिलीज हो रहा है उससे पर्माफ्रॉस्ट में लाखों साल से कैद वायरस भी आजाद हो जाएंगे.


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