प्राचीन काल में मौत की सजा देने के लिए सूली पर चढ़ाना सबसेे बर्बर तरीका माना जाता था. इसकेे अलावा जलाकर मारना और सिर काटना मौत की सजा देने के दो अन्य तरीके हुआ करते थे. लोगों को आतंक के लिए सबसे बड़ी और क्रूर सजा की तरह ये तमाशे का भी एक रूप हुआ करता था. सूली पर चढ़ाकर ईसा मसीह को भी मारा गया था, बाइबिल के अनुसार, सूली पर लटकाने के 6 घंटे बाद यीशू की मौत हुई थी. हालांकि मौत की सजा देने का ये भयानक तरीका उनके जन्म के सालों पहले शुरू हो गया था.


सूली पर चढ़ाने से पर कई दिनों बाद भी होती थी मौत
पुराने समय में सूली पर जब किसी व्यक्ति को लटकाया जाता था तो ये ऐसा नहीं है कि कुछ देर में ही या कुछ मिनटोंं में वो मौत के घाट उतर जाता था. 


कई मामलों में तो जिस व्यक्ति को सूली पर चढ़ाया जाता था उसकी मौत कई दिनों बाद भी होती थी. सूली पर लटकाए जाने वालों की मौत दम घुटने, खून और पानी की कमी और अंगोंं के बारी-बारी से काम करना बंद कर देेने से होती थी. यही वजह है कि इसे सबसे क्रूर सजा माना जाता था.


फारसी लोगों में प्रचलित थी सूली पर लटकाने की सजा
डॉक्टर सिलियर्स के हवाले लिखी गई बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, सूली पर चढ़ाने की शुरुआत असीरिया और बेबीलोन में हुई थी. दुनिया की ये दो महान सभ्यताएं आज के पश्चिम एशिया में फली फूली थीं. 


मौत की सजा देने का ये तरीका उस समय फारसी लोगों में काफी प्रचलित था. उस समय फारस के लोग क्रॉस केे बजाय पेड़ों और खंभों पर लोगों को सूली पर चढ़ाते थे. बीबीसी ने प्रोफेसर पेरेज केे हवाले से लिखा है कि दोषी व्यक्ति का़ मजाक उड़ाने के साथ मौत की क्रूर सजा देने के लिए इस तरीके का प्रयोग होता था. इसके लिए उन्हें पेड़ से लटका दिया जाता था ताकि दम घुटने और थकान से वे मर जाएं.


राजाओंं ने कई लोगों को दी ये सजा
कई राजा-महाराजा इस सजा को लोगों के सामने देकर अपना भय कायम रखते थे. कहा जाता है कि सिकंदर और उसकी सेना ने लेबनान के सोर शहर में लगभग 2000 लोगों को सूली पर लटका दिया था. कई सदियों तक चली इस प्रथा का आखिरकार अंत हुआ और रोमन सम्राट कान्सटेंटाइन ने चौथी सदी ईस्वी में सूली पर चढ़ाने की दर्दनाक और बर्बर सजा को खत्म कर दिया था.               


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