भारत की थल सेना सैनिकों की संख्या के हिसाब दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी थल सेना है. आज इसमें 12 लाख से अधिक सक्रिय और तक़रीबन 10 लाख रिज़र्व सैनिक हैं. बता दें कि भारतीय सेना में आर्म्स और सर्विसेज़ कॉर्प्स के अलावा सैकड़ों अलग-अलग रेजिमेंट्स हैं. लेकिन सोशल मीडिया पर सालों से एक दावा किया जाता है कि 1965 युद्ध में मुस्लिम रेजिमेंट ने लड़ाई लड़ने से मना कर दिया था. आज हम आपको बताएंगे कि इस दावे के पीछे कितनी सच्चाई है.
सेना में मुस्लिम रेजिमेंट
एबीपी न्यूज से बातचीत में रिटायर्ड कर्नल तेज टिक्कू से बताया कि भारतीय सेना ब्रिटिश टाइम में बनी है. इसको ब्रिटिश इंडियन आर्मी कहते थे. उन्होंने कहा कि आजादी के बाद ब्रिटिश इंडियन आर्मी के दो हिस्से हो गए थे. जिसमें एक तिहाई सैनिक पाकिस्तान चले गए थे और दो तिहाई हिस्सा भारत में था. उन्होंने कहा कि ब्रिटिश टाइम में एक नहीं बल्कि कई सारी मुस्लिम रेजीमेंट थी. जैसे बलूच रेजीमेंट जिसमें एक भी हिंदू सैनिक नहीं थे. लेकिन आजादी के वक्त एक समझौते के मुताबिक वो सभी रेजिमेंट पाकिस्तान चली गई थी.
धर्म के नाम पर नहीं कोई रेजीमेंट
अग्रेंजों ने लड़ाकू जातियों के आधार पर भारत में सेना की रेजीमेंट्स बनाई थीं. राजपूत रेजीमेंट, सिख रेजीमेंट, गोरखा, जाट रेजीमेंट तब ही बनी थी. इसमें सिर्फ सिख रेजीमेंट ही एक मात्र ऐसी यूनिट है, जो धर्म से जुड़ी हुई लगती है. इसके अलावा ब्रिटिश काल में और आजादी के बाद कोई हिंदू रेजीमेंट या फिर मुस्लिम रेजीमेंट या फिर क्रिश्चिन रेजीमेंट नाम से कोई यूनिट भारतीय सेना में नहीं बनी है.बता दें कि सिख रेजीमेंट भी इसलिए बनी थी, क्योंकि ये सिख राजाओं की देन थी, इसलिए उसे ब्रिटिश काल में भारतीय सेना में शामिल किया गया था.
जवानों के लिए देश पहले
सोशल मीडिया पर मुस्लिम रेजीमेंट को लेकर जो दावा किया जाता है, वो बिल्कुल गलत दावा है. एबीपी न्यूज से बातचीत में कई आर्मी अफसरों ने बताया कि भारतीय सेना के जवानों के लिए देश पहले होता है, उसके बाद धर्म और परिवार का नंबर आता है. इसलिए सेना में हिंदू-मुस्लिम-सिख या किसी अन्य धर्म की बात करना बिल्कुल गलत है.
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