अच्छा कमा रहे हैं, करोड़ों की कीमत वाला फ्लैट है, खाते में हर महीने मोटी तनख्वाह आ रही है. घर का बाथरुम ऐसा है कि उसमें महंगे शावर और नल भी लगे हैं. मगर उन लग्जरी बाथरुम के हाल ये हैं कि नल सूखे पड़े हैं, फ्लश करने के लिए भी मुंबई के चॉल की तरह बाल्टी भरकर पानी लाना पड़ रहा है. इनकम टैक्स के कागजों में मोटा टैक्स दे रहे हैं, लेकिन टैंकर के आगे पानी के लिए हाथ में बाल्टी लिए लाइन लगा रहे हैं. ऐसे कुछ हालात अभी आईटी हब माने जाने वाले शहर बेंगलुरु की है. 


जी हां, पिछले कुछ दिनों में कर्नाटक की राजधानी और हमारे आईटी सेक्टर का दिल बेंगलुरु पानी की अहम समस्या का सामना कर रहा है. पानी की दिक्कत अभी राजस्थान के बाड़मेर के किसी गांव के जैसी हो गई है. पानी की कमी के चलते लोग वर्क फ्रॉम होम ही नहीं, वर्क फ्रॉम नेटिव प्लेस मांग रहे हैं. हालत इतनी खराब है कि सोसायटी वालों ने स्टील के बर्तन की जगह डिस्पोजल इस्तेमाल करने की सलाह दी है, स्विमिंग पूल के इस्तेमाल पर बैन लग गया है. पानी के गलत इस्तेमाल पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाया जा रहा है. लोग गैप लेकर नहा रहे हैं, कपड़े धोना तो भूल जाइए. 


अब आपने ये तो जान लिया कि बेंगलुरु की मौजूदा तस्वीर कैसी है, मगर सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि बेंगलुरु में पानी की कमी हो गई. कमी भी ऐसी कि लोग शहर छोड़ने को ही मजबूर हो रहे हैं और ऑफिस से वर्क फ्रॉम होम की डिमांड कर रहे हैं तो जानते हैं कि आखिर ऐसा किस वजह से हो रहा है...


कितना बदला बेंगलुरु?


पहले तो आपको बताते हैं कि बेंगलुरु पिछले कुछ सालों में कितना बदल गया है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, बेंगलुरु में बिल्ड-अप एरिया लगातार बढ़ता जा रहा है यानी वहां की जमीन पर क्रंकीट के जंगल बढ़ रहे हैं और ये बढ़ोतरी 1055 फीसदी तक है. जहां एक ओर आंखों का सुकून देने वाला ये विकास लगातार हो रहा है, गगनचुंबी इमारतें दिख रही हैं, रात में लाइट्स के टावर दिख रहे हैं... वहीं वाटर स्प्रेड एरिया में 50 साल में 79 फीसदी तक की कमी आई है. इसी वजह से कार्बन के अवशोषण पर प्रभाव डालने वाले पेड़-पौधे, घास में 88% की कमी हुई है. 




बेंगलुरु में कम हो रहे ग्रीन कवर और वाटर स्प्रेड एरिया को लेकर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) ने बताया है कि पिछले 50 साल में बेंगलुरु कितना बदल गया है. इस रिपोर्ट में सामने आया है कि साल 1973 में जल प्रसार क्षेत्र 2,324 हेक्टेयर हुआ करता था, जो अब घटकर 2023 में सिर्फ 696 हेक्येर हो गया है. ये ही बेंगलुरु में लगातार गिर रहे भूजल स्तर का अहम कारण है. लगातार बन रहे कॉन्क्रीट के जंगल से पानी के लिए जगह कम हो गई है और ये ही बाढ़ जैसे स्थितियों के लिए जिम्मेदार है. 


रिपोर्ट के हिसाब से 98 फीसदी झीलों पर अतिक्रमण हो चुका है और बाकी जल निकायों में सीवेज और इंडस्ट्री की गंदगी भरी है. हैरान कर देने वाला आंकड़ा ये है कि साल 1973 में बिल्ड-अप एरिया सिर्फ 8 फीसदी था और 2023 में ये 93.3 फीसदी तक हो गया है. सिर्फ ये आंकड़ा ही यह दिखा देता है कि किस तरह से बेंगलुरु में पानी खत्म हो रहा है और इसका कारण क्या है. इसके साथ ही अहम वजह यहां की लगातार बढ़ रही जनसंख्या भी है. दरअसल, यहां की जनसंख्या कुछ सालों में 45 से ज्यादा फीसदी बढ़ गई है और 80 लाख की आबादी वाला बेंगलुरु अब डेढ़ करोड़ की आबादी को बोझ झेल रहा है. 


7 लोगों पर है एक पेड़


रिमोट सेंसिंग डेटा बताता है कि बेंगलुरु की जनसंख्या और वहां के पेड़ों की संख्या के हिसाब से सात लोगों पर एक पेड़ है और वो कार्बन उत्सर्जन के लिए पर्याप्त नहीं है. ऐसे में कहा जा सकता है कि पेड़ पौधों के ग्रीन एरिया में लगातार आ रही कमी और बढ़ रही बिल्डिंग की संख्या बताती है कि किस तरह जल स्तर नीचे जा रहा है. 




अभी की क्या है स्थिति?


रिपोर्ट्स के अनुसार, बेंगलुरु की कुल आबादी करीब 1.40 करोड़ है और रोजाना पानी की खपत 260 से 280 करोड़ लीटर प्रतिदिन है. मगर अभी पानी की सप्लाई 100 से 120 करोड़ लीटर ही हो पा रही है और ये जरुरत से 150 करोड़ लीटर कम है. कावेरी नदी के अलावा यहां पानी का सोर्स बोरवेल है, मगर 3000 से ज्यादा बोरवेल सूख चुके हैं. बता दें कि अभी पानी की कमी का कारण अपर्याप्त बारिश, भूजल स्तर में कमी और अनप्लांड इंफ्रास्ट्रक्चर बताया जा रहा है. 


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