चुनावी बॉन्ड को लेेकर सुप्रीम कोर्ट आज यानी 15 फरवरी को अपना फैसला सुनातेे हुए कहा है, 'चुनावी बॉन्ड स्कीम असंवैधानिक, हर चंदा हित साधने के लिए नहीं'. देखा जाए तो येे पूरा मामला इलेक्टोरल बॉन्ड सेे जुड़़ा है. जो सरकार द्वारा 2 जनवरी 2018 में पेश किया गया था. यदि आप नहीं जानतेे हैं कि चुनावी बॉन्ड है क्या तो चलिए आज जान लेते हैं.
क्या होता है चुनावी बॉन्ड?
चुनावी बॉन्ड राजनीतिक पार्टियों को दिए जाने वाले चंदे से जुड़ा है. दरअसल वित्तीय साधक के रूप मेें काम करने वाले चुनावी बॉन्ड के जरिए कोई व्यक्ति या व्यसायी अपना नाम उजागर किए बिना किसी पार्टी को चंदा दे सकता है.
योजना के प्रावधानों के अनुसार भारत का कोई भी नागरिक या देश में नियमित या स्थापित इकाई चुनावी बांड खरीद सकती हैै. ये बांड कई तरह सेे उपलब्ध होते हैं. जिनकी कीमत एक हजार सेे लेकर एक करोड़ रुपए तक होती है. ये बॉन्ड भारतीय स्टेट बैंक की किसी भी शाखा सेे लिया जा सकता है. साथ ही ये दान ब्याज मुक्त होता है.
क्यों है जरूरी?
अब आप सोच रहेे होंगे कि किसी को चंदा देना है तो वो बिना किसी बॉन्ड के भी दिया जा सकता है उसमें बॉन्ड की जरुरत क्या है. तो बता दें कि इसे किसी भी पार्टियों को दी जाने वाली राशि में पारदर्शिता लानेे के लिए शुरू किया गया था, ताकि किसी राजनीतिक पार्टी के पास कहां से पैसे आ रहे हैं ये सभी के सामने हो. 2018 में शुरू की गई इस योजना केे प्रावधानों के मुताबिक ये बॉन्ड किसी भी व्यक्ति केे द्वारा अकेले या संयुक्त रूप से खरीदा जा सकता है.
गुप्त होती है दानकर्ता की पहचान
चुनावी बांड की खास बात ये है कि ये किसी भी पार्टी को दान देने वाले दानकर्ता का नाम गुप्त रखता है. यानी इसके जरिए किसी भी दानकर्ता की पहचान उजागर नहीं होती. हालांकि सरकार और बैंकों द्वारा दान देने वाले की वैधता को सुनिश्चित करने के लिए और ऑडिटिंग के लिए इसका रिकॉर्ड अपनेे पास रखते हैं.
सुप्रीम कोर्ट नेे क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार ने इस योजना से काले धन पर रोक की दलील दी थी. लेकिन इस दलील से लोगों के जानने के अधिकार पर असर नहीं पड़ता. यह योजना RTI का उल्लंघन है. कोर्ट ने कहा, सरकार ने दानदाताओं की गोपनीयता रखना जरूरी बताया. लेकिन हम इससे सहमत नहीं हैं.
कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए आगे कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना अनुच्छेद 19 1(a) के तहत हासिल जानने के मौलिक अधिकार का हनन करती है. हर चंदा सरकारी नीतियों को प्रभावित करने के लिए नहीं होता. राजनीतिक लगाव के चलते भी लोग चंदा देते हैं. इसको सार्वजनिक करना सही नहीं होगा. इसलिए छोटे चंदे की जानकारी सार्वजनिक करना गलत होगा. किसी व्यक्ति का राजनीतिक झुकाव निजता के अधिकार के तहत आता है.
पार्टियों को अबतक मिला कितना चंदा?
बता दें फाइनेंशियल ईयर 2017 से 2021 के बीच 9 हजार 188 करोड़ रुपए का चंदा मिला था. ये चंदा 7 राष्ट्रीय पार्टी और 24 क्षेत्रिय दलों के हिस्से में आया था. इस पांचों सालों में बीजेपी को 5 हजार 272 करोड़ रुपए और बीजेपी को 972 करोड़ रुपए मिले थे.
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