क्या होते हैं फॉरएवर केमिकल्स...ऑर्डर किए गए हर खाने के डिब्बे में मौजूद है ये जहर
अगर आप इन फॉरएवर केमिकल्स के संपर्क में बहुत ज्यादा समय तक रहते हैं तो इससे आपको कैंसर तक होने का खतरा है. इसके अलावा ये आपके शरीर नें कई तरह की और गंभीर बीमारियों को पैदा कर सकते हैं.
हर रोज़ करोड़ों लोग ऑनलाइन खाना ऑर्डर करते हैं. लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है कि जो खाना प्लास्टिक और डिस्पोजल डिब्बों में पैक हो कर आप तक पहुंचता वो आपके स्वास्थ्य के लिए कितना बेहतर है. दरअसल, वैज्ञानिकों ने जब दुनियाभर में इस्तेमाल होने वाले फूड पैकेजिंग की जांच की तो उन्हें इन डिब्बों में एक या दो नहीं बल्कि 68 फॉरएवर केमिकल्स मिले.
आपको जानकर हैरानी होगी कि ये फॉरएवर केमिकल्स ना सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि आपके स्वास्थ्य के लिए भी बेहद हानिकारक हैं. चलिए आपको बताते हैं कि आखिर ये फॉरएवर केमिकल्स होते क्या हैं और इनका आप पर कितना बुरा असर होता है.
क्या होते हैं फॉरएवर केमिकल्स?
फॉरएवर केमिकल्स यानी वो केमिकल जो बहुत धीमी गति से पर्यावरण में विघटित होते हैं. आपको बता दें, ये पर-एंड पॉली-फ्लोरो अल्काइल सब्स्टेंसेस (पीएफएएस) मानव निर्मित रासायनिक यौगिकों का एक समूह जो पर्यावरण में बेहद लंबे समय तक बने रहते हैं. यही वजह है कि इन्हें वैज्ञानिकों ने फॉरएवर केमिकल्स का नाम दिया. अब तक दुनियाभर में 12000 से ज्यादा फॉरएवर केमिकल्स के मौजूद होने की पुष्टि हो चुकी है.
इनका उपयोग ज्यादा कहां होता है?
फॉरएवर केमिकल्स में ऐसे गुण मौजूद होते हैं कि ना इन पर तेल टिकता है ना पानी और ना इनपर आग का असर होता है. यही वजह है कि फूड पैकेजिंग में इनका खूब इस्तेमाल किया जाता है. खासतौर से इनका उपयोग नॉनस्टिक कुकवेयर, फूड पैकेजिंग, कालीन, कपड़ों, इलेक्ट्रॉनिक्स, अग्निशमन फोम, सौंदर्य प्रसाधनों जैसे उत्पादों में किया जाता है.
स्वास्थ्य के लिए कितने खतरनाक हैं ये
एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुए रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक अगर आप इन फॉरएवर केमिकल्स के संपर्क में बहुत ज्यादा समय तक रहते हैं तो इससे आपको कैंसर तक होने का खतरा है. इसके अलावा ये आपके शरीर नें कई तरह की और गंभीर बीमारियों को पैदा कर सकते हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि फॉरएवर केमिकल्स युक्त फूड पैकेजिंग का इस्तेमाल इंसानों के लिए खतरा बन सकता है. अगर इसे समय रहते कंट्रोल नहीं किया गया तो ये पर्यावरण और इंसान दोनों के लिए घातक साबित हो सकता है.
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