ग्लेशियर क्या होते हैं? ये कैसे बनते हैं और इनके पिघलने से जीवन कैसे प्रभावित होता है? यहां समझिए
पृथ्वी पर दो प्रकार के ग्लेशियर पाए जाते हैं. पहले अल्पाइन या घाटी में पाए जाने वाले ग्लेशियर और दुसरे पर्वतीय ग्लेशियर, जो पर्वतों की चोटी पर होते हैं. तापमान बढ़ने के कारण ये पिघल रहे हैं.
Glacier: ज्यादातर लोगों को ग्लेशियर के बारे में नहीं पता है. ग्लेशियर को हिमनद (Rivers Of Ice ) नाम से भी जाना जाता है. दरअसल, पहाड़ी इलाकों में गतिशील बर्फ की परत पाई जाती है. इस गतिशील बर्फ की परत को ही ग्लेशियर कहा जाता है. आज इस खबर के माध्यम से समझेंगे कि Glacier क्या होते हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं और कहां पाए जाए हैं? साथ ही यह भी जानेंगे कि यह कैसे बनते हैं और इनका पिघलना जीवन को किस तरह से प्रभावित करता है.
पृथ्वी पर दो प्रकार के ग्लेशियर पाए जाते हैं. पहले अल्पाइन या घाटी में पाए जाने वाले ग्लेशियर और दुसरे पर्वतीय ग्लेशियर, जो पर्वतों की चोटी पर होते हैं. पर्वतीय क्षेत्रों में जैसे-जैसे हम ऊंचाई पर बढ़ते हैं वैसे-वैसे टेंपरेचर घटता चला जाता है. जिस वजह से हवा में नमी आती है. जब यह हवा पर्वतों से टकराती है तो बर्फ का रूप ले लेती है. इसे ही ग्लेशियर कहा जाता है. भारत में श्रीनगर, लद्दाख और हिमाचल में बड़े-बड़े आकार के Glacier पाए जाते हैं.मौसम बदलने पर जब तापमान बढ़ता है तो यह बर्फ पिघलती है, जो नदियों में पानी का मुख्य स्त्रोत है.
कैसे बनते हैं ग्लेशियर
ज्यादा ठंडे इलाकों में हर साल बर्फ जमा होती रहती है. बर्फबारी होने पर पहले से जमा हुई यह बर्फ जमने लगती है. जिससे उसका घनत्व और अधिक बढ़ जाता है. जिससे छोटे छोटे बर्फ के टुकड़े ग्लेशियर में बदलने लगते हैं और नई बर्फबारी होने से नीचे दबने लगते हैं. यह प्रक्रिया फर्न कहलाती है. इसी तरह यह ठोस बर्फ बहुत अधिक मात्रा में जमा होने लगती है. यही ग्लेशियर पिघलकर नदियों में पानी का स्त्रोत बन जाता है. जब यह ग्लेशियर पानी के साथ मिलता है तो और भी ज्यादा खतरनाक होता है. क्योंकि पानी के साथ मिलकर यह टाइटवाटर Glacier बन जाता है. पानी में तैरते इन बर्फ के टुकड़ों से पानी का बहाव बढ़ जाता है जिन्हे केल्विन कहा जाता है.
ग्लेशियर का जीवन पर असर
Glacier के ज्यादा मात्रा में पिघलने से आसपास के इलाकों में बाढ़ का खतरा अधिक बढ़ जाता है. जिसके कारण खेती एवं स्थानीय निवास बहुत अधिक प्रभावित होता है. यदि किसी गर्म इलाके के पास ग्लेशियर पिघलता है तो वहां के लोगों को उसका लाभ मिलता है. बहुत ज्यादा मात्रा में ग्लेशियर पिघलने से पूरे विश्व के मौसम पर इसका असर पड़ता है और जलवायु चक्र अस्त व्यस्त हो जाता है. पर्यावरण में सुधार लाने के प्रयासों में कई देशो ने कार्बन उत्सर्जन की मात्रा को नियंत्रित करने का फैसला लिया है. पृथ्वी पर ग्लेशियर पानी का सबसे बड़ा सोर्स है और इनकी उपयोगिता नदियों के स्रोत के तौर पर होती है. हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्लेशियर के पिघलने से कई नई तरह की महामारी आने का भी अनुमान है.
पिघल रहे अंटार्कटिका के ग्लेशियर
ग्लोबल वार्मिंग के कारण अंटार्कटिका के ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं. पश्चिम अंटार्कटिका में एक ऐसा ग्लेशियर है जो बहुत तेजी से पिघल रहा है. इसे टाइट्स ग्लेशियर कहते हैं. बता दें कि इस ग्लेशियर का आकार ब्रिटेन के क्षेत्रफल से भी बड़ा है. इस ग्लेशियर से साल भर पानी पिघल कर समुद्र में गिर रहा है, जिस वजह से समुद्र का जलस्तर तेजी से बढ़ता जा रहा है. यूनाइटेड नेशंस क्लाइमेट साइंस पैनल ने अपने एक शोध के बाद बताया कि साल 2100 तक समुद्र का जलस्तर 26 सेंटीमीटर से 1.1 मीटर तक बढ़ने की संभावना है. जिसकी वजह से समुद्र के किनारे बसे देश, शहर और गांवों के डूबने का खतरा बढ़ रहा है.
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