राजधानी दिल्ली समेत जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अक्सर पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग की जाती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन केंद्रशासित प्रदेशों को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के बाद क्या-क्या बदल सकता है. आज हम आपको बताएंगे कि किसी भी राज्य को पूर्ण राज्य का दर्जा देने पर वहां क्या-क्या बदलाव होता है और प्रशासन में क्या फेरबदल होता है.
पूर्ण राज्य का दर्जा
देश की राजनीति में अक्सर दिल्ली समेत लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग की जाती है. बीते कुछ महीने पहले लद्दाख के स्थानीय लोगों ने पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर कड़ाके की ठंड में सड़क पर आकर प्रदर्शन भी किया था. अब सवाल ये है कि आखिर केंद्रशासित प्रदेश के लोग पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग क्यों करते हैं. दिल्ली की आप सरकार भी हमेशा पूर्ण राज्य दर्जा की मांग करती है.
केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा
पूर्ण राज्य का दर्जा का मामला समझने के लिए उदाहरण के तौर पर दिल्ली को लेते हैं. बता दें कि वर्तमान में संविधान के अनुच्छेद 239A के तहत दिल्ली को 'केंद्र शासित प्रदेश' का दर्जा दिया गया है. वहीं लेफ्टिनेंट गवर्नर को दिल्ली का प्रशासक नामित किया गया है. आसान भाषा में दिल्ली का लेफ्टिनेंट गवर्नर या उप-राज्यपाल ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का संवैधानिक प्रमुख है.
संविधान के अनुच्छेद 239A के तहत दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है. इसके तहत. प्रशासक उपराज्यपाल होंगे और राष्ट्रपति की ओर से काम करेंगे. अब दिल्ली सरकार को राज्य सूची और समवर्ती सूची पर कानून बनाने का अधिकार है लेकिन जन, जमीन और पुलिस पर दिल्ली विधानसभा कानून नहीं बना सकती है. यह पूरी तरह से केंद्र का अधिकार क्षेत्र है.
इतना ही नहीं उपराज्यपाल, मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल की सलाह से फ़ैसला करेंगे, हालाँकि यह कहीं नहीं लिखा है कि एलजी सलाह मानने को बाध्य हैं. इसके अलावा जिस मुद्दे पर उपराज्यपाल और मंत्रियों के बीच किसी तरह का मतभेद पैदा होता है, तो उपराज्यपाल इस मामले को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं और वही निर्णय अंतिम होगा.
केंद्रशासित प्रदेश
केंद्र शासित प्रदेश भी एक यूनिट है. यहां पर केंद्र सरकार द्वारा शासन होता है. हालांकि राजधानी दिल्ली कुछ मामलों में अपवाद है. केंद्र शासित प्रदेशों में केंद्र सरकार की ओर से उपराज्यपाल को नियुक्त किया जाता है. वहीं एक केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा भी हो सकती है और नहीं भी हो सकता है. उदाहरण के तौर पर संविधान में 69वें संशोधन, एक्ट 1991 के तहत दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र(एनसीटी) का दर्जा प्राप्त हुआ था. इसके साथ ही यहां पर विधानसभा के गठन का भी प्रावधान है. वहीं पुड्डुचेरी में भी विधानसभा है. बता दें कि केंद्र शासित प्रदेशों को विशेष कानून बनाने पर केंद्र सरकार से भी मंजूरी लेनी होती है.
पूर्ण राज्य का दर्जा देने पर क्या बदलेगा?
किसी भी राज्य को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद उस राज्य में तैनात पुलिस और अन्य राज्य के अधिकारी फिर उस राज्य सरकार के अधीन काम करते हैं. इसके अलावा राज्य में कोई भी कानून लागू करने के लिए केंद्र सरकार की सहमति की जरूरत नहीं होती है. इसके लिए राज्य के नेता विधानसभा में कानून प्रस्ताव करके पास करा सकते हैं. वहीं राज्य का मुख्यमंत्री भी अन्य राज्यों की तरह अपने विवेक से निर्णय ले सकता है, उसे हर निर्णय के लिए उपराज्यपाल से अनुमति लेने की जरुरत नहीं होती है. इसके अलावा केंद्र से मिलने वाली वित्तीय मदद बंद होने पर भी ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि उसे वित्त आयोग की तरफ पैसा मिलने लगेगा. इसीलिए राज्य के नेता पूर्ण राज्य दर्जा की मांग करते हैं.
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