Akbar Diwali: इस बार दिवाली 12 नवंबर को है. खुशियों की दिवाली सेलिब्रेट करने के लिए न सिर्फ भारत ही बल्कि दुनिया के दूसरे मुल्कों में भी लोग तैयारी शुरू कर चुके हैं. दिवाली का पर्व अंधेरे से उजालों के तरफ ले जाने का पर्व है. इस त्यौहार को सेलिब्रेट करने की परंपरा कोई 100-200 साल पुरानी नहीं है. बल्कि इसे मुगलों से पहले के समय से सेलिब्रेट किया जाता रहा है. आज की स्टोरी में हम आपको बताएंगे कि मुगल काल के दौरान अकबर अपने शासनकाल में इसे कैसे सेलिब्रेट करता था. 


ऐसे होता था सेलिब्रेशन


भारत में मुगलों का शासन बाबर से लेकर बहादुर शाह द्वितीय तक रहा है. 1857 की क्रांति के बाद मुगलों का शासन भारत से खत्म हो गया था. उसे दौर के तमाम इतिहासकारों ने अपनी किताब में मेंशन किया है कि मुगलों के समय में दिवाली को जश्न-ए-चरागा का नाम दिया गया था. अकबर के शासनकाल में दिवाली की जश्न की शुरुआत की गई थी. अगर हम शहर की बात करें कि किस शहर में अकबर ने सबसे पहले दिवाली का सेलिब्रेशन शुरू किया तो वह शहर था आगरा. आपको जानकर हैरानी होगी कि उसी समय आकाश दिए की भी शुरुआत हुई थी. अकबर के बाद से मुगल के हर शासनकाल में दिवाली शिद्दत से मनाई गई. 


बेहद खास होती थी तब की दिवाली


दिवाली के सेलिब्रेशन का अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि उस समय महल के ध्रुव पर एक विशाल दीपक लगाया जाता था जो दिवाली वाली रात जलाई जाती थी, और यह कोशिश होती थी कि यह दिया पूरी रात जले. आपको जानकर हैरानी होगी इस खास दिए को जलाने के लिए सीधी का इस्तेमाल होता था क्योंकि यह दिया इतना बड़ा होता था कि इस दिए की हुई और बत्ती को सही तरीके से लगाने में चीनी का इस्तेमाल करना पड़ता था. 


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