Indian Railway: आपने कई स्टेशन के नाम सुने होंगे? जिनमें से कुछ के नाम के पीछे ज्यादातर सेंट्रल, टर्मिनल या रोड लिखा होता है. बहुत से लोग इसका मतलब भी जानते हैं. लेकिन क्या कभी आपने कोई ऐसा स्टेशन देखा है जिसके नाम के आखिर में पीएच (PH) लिखा हो? 


शायद कुछ लोगों ने ऐसे स्टेशन देखे होंगे, लेकिन ज्यादातर लोगों को इसका मतलब मालूम नहीं होगा. ऐसे स्टेशन कम ही देखने को मिलते हैं. लेकिन फिर भी एक सवाल तो मन में आता ही है कि आखिर इस पीएच का मतलब क्या होता है? इसे क्यों लिखा जाता है? आइए जानते हैं. 


क्या होता है PH का मतलब?


PH का मतलब होता है 'पैसेंजर हॉल्ट'. जब किसी स्टेशन के नाम के साथ पीएच लिखा होता है तो उसका मतलब होता है कि इस स्‍टेशन पर सिर्फ पैसेंजर गाडि़यां ही रुकेंगी. ये स्टेशन बाकियों से थोड़े खास होते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि यहां रेलवे की ओर से कोई अधिकारी या कर्मचारी नियुक्त नहीं किया जाता है. पैसेंजर हॉल्ट डी क्लास के स्टेशन होते हैं. ट्रेनों को रुकने का संकेत देने के लिए यहां कोई सिग्नल भी नहीं होता है.


गाड़ियां कैसे रुकती हैं?


अब सवाल आता है कि जब स्टेशन पर सिग्नल नहीं होता है तो गाड़ियां यहां रुकती कैसे हैं? दरअसल, ट्रेन ड्राइवर को ऐसे स्टेशनों पर गाड़ी को अमूमन 2 मिनट के आसपास रुकने का निर्देश मिला होता है. अपने विवेक के आधार पर लोको पायलट इन स्टेशनों पर गाड़ी को रोकते हैं.  


टिकट कौन देता है?


इसके अलावा, एक सवाल यह भी ज़ेहन में आता है कि जब यहां कोई स्टाफ मौजूद नहीं होता तो फिर टिकट कौन बेचता है? दरअसल, ऐसे डी क्लास स्टेशनों पर रेलवे किसी स्थानीय व्यक्ति को ही कॉन्ट्रेक्ट या कमीशन के आधार पर टिकट बेचने के लिए नियुक्त कर देता है.


इसलिए रखा जाता है इन्हे चालू


ऐसे स्टेशन लगभग खत्म होने की कगार पर होते हैं. रेलवे को इनसे कोई खास रेवेन्यू नहीं मिल रहा होता है इसलिए वह इनपर ध्यान भी नहीं देता है. ऐसे स्टेशनों को स्थानीय लोगों की मांग पर चालू रखना पड़ता है या बंद पड़े रेलवे स्टेशनों को फिर शुरू किया जाता है.


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