बाबरी मस्जिद के मलबे का क्या हुआ? क्या वो अभी भी कहीं रखा हुआ है?
अयोध्या में उसी जगह राम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है जहां कुछ समय पहले विवादित ढांचा हुआ करता था. मुस्लिम पक्ष ने कई बार उस ढांचे के मलबे को देने की मांग की थी.
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अयोध्या में 22 जनवरी को श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है. सालों चले इस भूमि विवाद में हिंदू और मुस्लिम पक्ष अपना-अपना दावा जताते रहे और ये मुद्दा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. आखिरकार 2019 में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू पक्ष के हक में अपना फैसला सुनाया. जिसके बाद राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया. अब अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण उसी जगह किया जा रहा है जहां विवादित ढांचा था, लेकिन इसी बीच लोगों के मन में ये सवाल भी है कि आखिर बाबरी मस्जिद का मलबा कहां है?
कहां है बाबरी मस्जिद का मलबा?
6 दिसंबर 1992 को कार सेवकों द्वारा जब बाबरी मस्जिद को ढहाया गया तो उस जगह सिर्फ मलबा बचा रह गया था. ऐसे में सुरक्षा की दृष्टि से भारी पुलिस बल और पैरामिलिट्री के जवान तैनात किए गए. विवाद जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो मुस्लिम पक्ष बार-बार कहता रहा कि बाबरी मस्जिद के मलबे पर उनका अधिकार है. वहीं बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक रहे जफरयाब जिलानी जैसे कई नेताओं ने बार-बार कहा कि हिंदू पक्ष उन्हें मलबा लेने से रोक नहीं सकता.
वहीं साल 2019 में जब सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के भूमि विवाद में हिंदू पक्ष में फैसला सुनाया था, उस वक्त ऑल इंडिया बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर ये कहा था कि वो बाबरी के मलबे के लिए अदालत का रुख करेंगे. कमेटी के अनुसार उन्होंने रिव्यू पिटीशन के दौरान बाबरी के मलबे की मांग की थी लेकिन कोर्ट द्वारा उनकी अर्जी को खारिज कर दिया गया था.
उस वक्त जफरयाब जिलानी ने बयान दिया था कि शरियत के अनुसार किसी मस्जिद के मलबे का किसी और निर्माण में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में कोई दिशा-निर्देश नहीं दिया. बाबरी मस्जिद के ढहाए गए गुंबद, पिलर और दूसरे मलबे को मुस्लिम पक्ष को सौंप दिया जाना चाहिए था.
चिट्ठी लिखकर की थी मलबा लौटाने की मांग
सुप्रीम कोर्ट के फैसला सुनाए जाने के बाद ऑल इंडिया बाबरी मस्जिद कमेटी ने हिंदू पक्ष को एक पत्र लिखकर सद्भावना बनाए रखने के नाते मस्जिद का मलबा और अवशेष लौटाने की मांग की थी. ये चिट्ठी सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट के. परासरण के नाम लिखी पर गई थी, जिन्होंने उच्चतम न्यायालय में हिंदू पक्ष की तरफ से पैरवी की थी और अब वो श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य भी हैं.
हालांकि जब इस मलबे के बारे में श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय से पूछा गया तो क्विंट से हुई बातचीत में उन्होंने बताया था, कौन जाने 28 साल बाद क्या हुआ, किसको पता. लोकतंत्र में हर किसी को अपनी बात और मांग रखने का अधिकार है. जब तक मामला कोर्ट में था, तब तक हमारा इस पर ध्यान था. अब हमारे लिए यह विषय समाप्त हो गया है और हम आगे बढ़ रहे हैं. चंपत राय ने इसी इंटरव्यू में ये भी कहा था कि जब विवादित ढांचे को गिराया गया तो जो कुछ भी वहां बचा उसे कार सेवक राम जन्मभूमि के प्रसाद के रूप में अपने साथ ले गए. वहां कुछ नहीं छोड़ा. हालांकि वो कौन कार सेवक थे और कहां से आए थे, प्रसाद के रूप में अवशेष कहां ले गए इस बारे में चंपत राय को कुछ नहीं पता.
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