कई बार आप फिल्मों में देखते हैं कि कोई रोमांटिक सीन चल रहा होता है और बारिश हो जाती है, ये तो आप भी जानते हैं कि वो नॉर्मल बारिश नहीं बल्कि आर्टिफिशियल बारिश होती है. जो दिल्ली-एनसीआर में सरकार पॉल्यूशन को कंट्रोल करने के लिए भी करवाने पर विचार कर रही है. ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि आखिर ये होती कैसे है और इसे करवाने में कितना खर्च आता है? चलिए जान लेते हैं.


कैसे होती है आर्टिफिशियल रेन?


आपको बता दें आर्टिफिशियल रेन यानी क्लाउड सीडिंग एक मौसम में बदलाव लाने वाली टेक्नोलॉजी होती है. क्लाउड सीडिंग करने के लिए एयरोप्लेन या हेलीकॉप्टर के जरिए बादलों में सिल्वर आयोडाइड या पोटैशियम आयोडाइड जैसे आम पदार्थों का छिड़काव होता है.


इस तरह के पदार्थ न्यूक्लाई की तरह काम करते हैं, जिनके आसपास पानी की बूंदे बन सकती हैं. फिर इसी प्रक्रिया के जरिए बारिश की बूंदें बनने लगती है. इस तरह क्लाउड सीडिंग के जरिए बारिश करवाई जाती है. आमतौर पर इस प्रोसेस को पूरा होने में लगभग डेढ़ घंटे का समय लगता है, लेकिन आर्टिफिशियल बारिश होने में एक खास कंडीशन होती है. इसकी सफलता में नमी से भरे बादल और हवा का सही पैटर्न अहम रोल निभाता है.


आर्टिफिशियल बारिश करवाने में कितनी आती है लागत?


अब सवाल ये उठता है कि आखिर आर्टिफिशियल बारिश करवाने में लागत कितनी आती है? तो बता दें कि इस तरह कृत्रिम वर्षा करवाने पर लगभग 13 करोड़ रुपये तक का खर्चा आ सकता है. उसमें भी ये मौसम पर निर्भर करता है कि ये आर्टिफिशियल बारिश सफल रूप से हो पाएगी या नहीं.


आर्टिफिशियल बारिश से क्या होते हैं फायदे?


दिल्ली सरकार द्वारा पिछले साल से एयर पॉल्यूशन कम करने के लिए ऑर्टिफिशियल बारिश करवाने की प्लानिंग की जा रही है. हालांकि इस टेक्नोलॉजी के कई फायदे भी हैं. किसी खास जगह पर बारिश करवानी हो या फिर सूखे से निपटने की स्थिति के लिए ये बारिश काफी कारगर साबित हो सकती है. जो एग्रीकल्चर, एनवायरेनमेंट या वाटर रिसॉर्स मैनेजमेंट जैसे कामों के लिए मौसम के पैटर्न को बदलने वाली शानदार टेक्नोलॉजी है. ऐसे में इसका इस्तेमाल कर दिल्ली सरकार भी प्रदूषण की समस्या से निजात पा सकती है. वहीं कई अन्य कामों में भी आर्टिफिशियल बारिश काफी मददगार साबित हो सकती है.     


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