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क्या है कार्बन बॉर्डर टैक्स?..अगर यह लगा तो क्यों दुनियाभर में भारत के उत्पादों की मांग गिर जायेगी

Carbon Border Tax: ऐसे देश जो जलवायु परिवर्तन के लिए बने नियमों को गंभीरता से नहीं के रहे हैं. उन देशों ने उत्पादों पर कार्बन बॉर्डर टैक्स लगाने की बात हो रही है. आइए इसे समझते हैं.

What is Carbon Border Tax: दुनियाभर के कई देशों में कार्बन बॉर्डर टैक्स की चर्चा हो रही है. हाल ही में Egypt में आयोजित जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन कॉप-27 में भारत और चीन समेत कई बेसिक देशों के समूह ने कार्बन बॉर्डर टैक्स को लेकर आपत्ति जताई है. समूह देशों ने अपने बयान में कहा कि कार्बन बॉर्डर टैक्स को नजरअंदाज करना चाहिए. क्योंकि इसका असर अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर पड़ेगा. बेसिक, ऐसे चार देशों का ग्रुप है जो इंडस्ट्रियल देश के तौर पर विकसित हुए हैं. इस समूह का गठन नवंबर 2009 में हुआ था. इस समूह में भारत, चीन, ब्राजील और साउथ अफ्रीका शामिल हैं.

क्या है कार्बन बॉर्डर टैक्स?
दरअसल, जो देश जलवायु परिवर्तन के नियमों को लागू करने के लिए सख्त कदम नहीं उठा रहे हैं, उन देशों में बने उत्पादों पर आयात शुल्क लगाने की बात हो रही है. इस आयात शुल्क को ही कार्बन बॉर्डर टैक्स कहा जाता है. ऐसे में आयात शुल्क लगने से इन देशों के मुनाफे में कमी आएगी और वहां की अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ेगा. इस टैक्स को लागू करने की योजना यूरोपियन यूनियन ने बनाई है, जोकि दुनिया का तीसरा बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है. यह टैक्स उन उत्पादों पर लगाया जाएगा, जिनसे कार्बन का उत्सर्जन ज्यादा होता है. जैसे- सीमेंट, फर्टिलाइजर, स्टील, एल्युमिनियम और बिजली उत्पादन.

यह टैक्स लागू होने पर भारतीय उत्पादों की कीमतों में इजाफा होगा. इसका नतीजा यह होगा कि महंगे होने के कारण दुनियाभर में भारतीय उत्पादों की मांग में गिरावट आ जायेगी. कार्बन बॉर्डर टैक्स भारतीय उत्पादों के लिए चुनौती बढ़ाएगा.

क्यों लागू किया जा रहा?
कार्बन बॉर्डर टैक्स, कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों को इसके उत्सर्जन को रोकने या कम करने के लिए एक सख्त संदेश है. यूरोपियन यूनियन इस टैक्स के पक्ष में है. यूनियन का दावा है कि इस टैक्स को लागू करने से पर्यावरण को खूब फायदा मिलेगा और इस टैक्स का विरोध करना गलत है. यूरोपियन यूनियन के अलावा अमेरिका के कैलिफोर्निया में भी इस टैक्स को लागू किया गया है. कनाडा और जापान भी इसे अपनाने की योजना पर विचार कर रहे हैं. हालांकि, कई देशों को इससे आपत्ति भी है.

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