पॉजिटिव और निगेटिव एनर्जी हर जगह होती है. लोग हमेशा चाहते हैं कि उनके पास पॉजिटिव एनर्जी रहे और निगेटिव एनर्जी उनसे दूर रहे. यही वजह है कि इंसान सदियों किसी ना किसी माध्यम से निगेटिव एनर्जी को अपने आप से दूर रखता है. आज कल ये काम डेविल आई करती है. आपने देखा होगा कि इमोजी से लेकर ब्रेसलेट, लॉकेट और हर जगह इसका प्रयोग किया जाता है. चलिए आपको बताते हैं कि आखिर इस नीले गोले का मतलब क्या होता है और पहली बार इसे कब नजरबट्टू के रूप में प्रयोग किया गया.


सबसे पहले कब हुआ था इसका इस्तेमाल


बुरी नज़र जैसी कोई चीज़ भी होती है, इसका इतिहास आपको 5000 साल पहले मेसोपोटामिया से देखने को मिलेगा. दरअसल, मेसोपोटामिया के सबसे पुराने शहरों में से एक टेल ब्रैक में जब खुदाई हुई तो वहां कई ताबीज़ मिले थे. वहीं उस समय के कुछ अवशेषों में इसे मिट्टी के गोलियों के रूप में दिखाया गया था. कुछ लोग कहते हैं   ये छोटे-छोटे मिट्टी के गोले एविल आई ही थी.


चमकदार एविल आई कब बनें


एविल आई (Evil eye) के साक्ष्य मिस्र, रोम और ग्रीस के साथ साथ तुर्कीए में भी मिल जाएंगे. कहा जाता कि जिस कांच के एविल आई को आप आज देखते हैं उनको बनाने की शुरूआत 1500 ईसा पूर्व भूमध्यसागरीय क्षेत्र के कांच के व्यापार वाले क्षेत्र में हुई थी. कहा जाता है कि पहली बार इन्हें चमकदार मिस्र की मिट्टी से बनाया गया था, क्योंकि वहां कि मिट्टी में ऑक्साइड की मात्रा ज्यादा पाई जाती है. वहीं इसे नीला करने के लिए तांबे और कोबाल्ट में रख कर इसे जलाया जाता था.


भारत में इसका असर


बुरी नजर का जिक्र भारतीय संस्कृति में भी है, लेकिन हम सदियों से इससे बचने के लिए अलग अलग तरह के चीजों का प्रयोग करते आए थे. इनमें नींबू मिर्ची सबसे ऊपर थी. लेकिन अब लोग सोशल मीडिया से प्रभावित हो कर कोई चीज करते हैं. आज आपको भारी मात्रा में भारतीय युवा अपने हाथों में एविल आई का ब्रेसलेट और गले में नेकलेस पहने मिल जाएंगे. बड़े बड़े पढ़े लिए लोग इसका प्रयोग अपने घरों में करते दिख जाएंगे. ये सभी लोग सोशल मीडिया से प्रभावित होकर पश्चिमी सभ्यता की ओर झुकते हैं और उस पर गर्व भी करते हैं. जबकि भारत में आज भी कई लोग हैं जो बुरी नजर से बचने के लिए निंबू मिर्ची और अन्य तरह के उपायों का प्रयोग करते हैं.


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