(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
क्या होता है फास्ट ट्रैक कोर्ट, किन केसों की होती है इस कोर्ट में सुनवाई
भारतीय अदालतों में जाने वाले फैसलों को लेकर कहा जाता है कि चप्पल घिस जाएगा, लेकिन तारीख पर तारीख का सिलसिला नहीं खत्म होगा. जानिए फास्ट ट्रैक कोर्ट में कितने दिनों में आता है फैसला.
भारतीय समाज में एक कहावत है कि कितनी भी बड़ी मुसीबत आ जाए, लेकिन कोर्ट कचहरी का चक्कर न लगाने पड़ें. कोर्ट कचहरी के चक्करों में कई लोगों का पूरा जीवन ही तारीख पर तारीख में बीत गया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि फास्ट ट्रैक कोर्ट क्या होता है और किन केसों की सुनवाई ऐसी अदालतों में होती है.
फास्ट ट्रैक कोर्ट
बता दें कि अपने देश में फास्ट ट्रैक कोर्ट की शुरूआत महिला अपराध में शामिल दोषियों को देने से हुई थी. महिलाओं और बालिकाओं की सुरक्षा के लिए सरकार ने आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम-2018 के जरिए रेप के अपराधियों के लिए मौत की सजा जैसे कड़ी सजा का प्रावधान किया है. पीड़ितों को तत्काल न्याय देने के लिए ही अक्टूबर-2019 से न्याय विभाग ने यौन अपराधों से संबंधित मामलों की जल्द सुनवाई के लिए देश भर में फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स (FTC ) के साथ ही विशिष्ट पॉक्सो न्यायालयों की स्थापना के लिए एक केंद्र प्रायोजित योजना लागू की है.
जानकारी के मुताबिक हर फास्ट ट्रैक कोर्ट में एक न्यायिक अधिकारी और सात सदस्य कर्मचारियों का प्रावधान किया गया है. अभी देश के कुल 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस योजना में शामिल किया जा चुका है.
कैसे होती है केस की निगरानी
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मई 2024 तक 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 410 विशिष्ट पॉक्सो कोर्ट के साथ ही 755 एफटीएससी (फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स) काम कर रहे हैं. इनमें 2,53,000 से अधिक मामलों को निपटाया गया है. इस योजना के मजबूत कार्यान्वयन के लिए न्याय विभाग की ओर से इन न्यायालयों के आंकड़ों की मासिक आधार पर निगरानी की जाती है. इसके लिए एक ऑनलाइन निगरानी पोर्टल भी तैयार किया गया है. इसके अलावा हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल और राज्यों के पदाधिकारियों के साथ नियमित रूप से समीक्षा बैठक भी की जाती है.
कैसे काम करता है फास्ट ट्रैक कोर्ट
बता दें कि किसी भी फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने का फैसला संबंधित राज्य की सरकार अपने यहां के हाईकोर्ट से चर्चा के बाद करती है. संबंधित हाईकोर्ट किसी भी फास्ट ट्रैक कोर्ट के लिए समय सीमा तय कर सकता है कि सुनवाई कब तक पूरी की जानी है. इसके आधार पर फास्ट ट्रैक कोर्ट यह तय करता है कि किसी मामले को रोज सुना जाएगा या कुछ दिनों के अंतराल पर सुनवाई होगी. सभी पक्षों को सुनने के बाद फास्ट ट्रैक कोर्ट तय समय में अपना फैसला सुनाता है.
बता दें कि जहां अदालतों में फैसला सुनाने में दशक लग जाते हैं, वहीं फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई और फैसले की रफ्तार काफी तेज होती है. इतना ही नहीं कई मामलों में तो फास्ट ट्रैक कोर्ट ने एक सप्ताह के भीतर ही दोषियों को सजा सुनाई है. राज्य सरकार समेत सभी सुरक्षा एजेंसी किसी भी विशेष केस को फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई के लिए अपील कर सकती है.
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