Frozen Embryos For Pregnancy: आजकल दंपत्तियों में इनफर्टिलिटी एक बड़ी और आम समस्या हो गई है. आमतौर पर स्वस्थ दिखने वाले कपल भी मां-बाप नहीं बन पाते हैं. कई बार पुरुष के स्पर्म में कमी होती है तो कभी महिलाओं में एग समस्या. कई मामलों में ऐसा भी होता है कि दोनों एकदम ठीक होते हैं, लेकिन तब भी बच्चा पैदा होने में समस्या होती है. इन सभी समस्याओं का हल इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) के पास है. आइए इसे थोड़ा विस्तार से समझते हैं... 


IVF से है संभव
बच्चे पैदा करने के कई तरीके खोजे गए हैं. विज्ञान की बदौलत स्पर्म या एग को संरक्षित रखकर कई साल बाद मां-बाप बना जा सकता है. टेस्ट ट्यूब की मदद से भी बेबी पैदा किए जा सकते हैं. इसके अलावा, किसी दूसरी दंपत्ति के बच्चे को कोई और औरत भी अपने गर्भ में पाल सकती है. यह सब IVF का हिस्सा होता है. IVF में पुरुष के स्पर्म और महिला के एग या फिर इन दोनों के कॉम्बिनेशन से बनने वाले भ्रूण को भी सुरक्षित रखा जा सकता है. जो लोग गंभीर रोगों से जूझ रहे हैं, शारीरिक अक्षमता या किसी कानूनी अड़चन के चलते मां-बाप नहीं बन पा रहे हैं, उन लोगों के लिए यह टेक्नोलॉजी वरदान से कम नहीं है. 


भ्रूण का महत्व और इसका बनना?
भ्रूण को अंग्रेजी में Embryos कहते हैं. महिला और पुरुष के संबंध के बाद, पुरुष के स्पर्म और महिला के एग के मिलने से ही भ्रूण बनने की प्रक्रिया शुरू होती है. महिला के एग को फर्टिलाइज करने के लिए पुरुष का कोई एक स्पर्म ही काफी होता है. फर्टिलाइज हुए एग को जायगोट कहते हैं. जैसे-जैसे जायगोट गर्भाशय की ओर बढ़ता है तो यह अपना रूप बदलता रहता है. कुछ समय बाद यह कोशिकाओं की एक खोखली गेंद जैसा बन जाता है. इस गेंद सी संरचना को ब्लास्टोसिस्ट कहा जाता है. ब्लास्टोसिस्ट जब गर्भाशय में पहुंच जाता है तो यह गर्भाशय की दीवार से चिपक जाता है और भ्रूण का निर्माण होता है.


IVF में समस्या के हिसाब से हल निकाले जाते हैं. उदाहरण के लिए अगर स्पर्म काउंट में समस्या है तो लैब में स्पर्म क्वालिटी को लेकर काम किया जाता है. ऐसा ही महिलाओं के एग के साथ भी किया जा सकता है. एग को भी कुछ दिनों तक फ्रीज करके रखा जा सकता है. कई महिलाएं बाद में प्रेग्नेंसी के लिए या ज्यादा उम्र में मां बनने के लिए भी अपने एग को फ्रीज करवा कर रखवा लेती हैं.


क्या है Frozen Embryos?
इस प्रक्रिया में महिलाओं के अंडाशय से एग को निकाला जाता है और उसे फर्टिलाइज करके भ्रूण बनाया जाता है. जब भ्रूण तैयार होकर कुछ दिन का हो जाता है तो उसे फ्रीज कर दिया जाता है. यानी इस भ्रूण को एक निश्चित तापमान पर कुछ समय के लिए संरक्षित किया जा सकता है. बाद में ज़रूरत पड़ने पर इसे वापस से महिला के गर्भाशय में ट्रांसप्लांट किया जाता है. सफल ट्रांसप्लांट होने पर यह भ्रूण महिला के पेट में बड़ा होने लगता है और आगे चलकर बच्चा बन जाता है.


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