(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
नोबेल विजेता रिगोबेर्ता मेन्चु तुम को मिला गांधी मंडेला अवॉर्ड, जानें क्या होता ये और किसे दिया जाता है?
Gandhi Mandela Award :अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर ग्वाटेमाला की मानवाधिकार कार्यकर्ता,नारीवादी,और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता रिगोबेर्ता मेन्चु तुम को गांधी मंडेला अवॉर्ड 2020 से सम्मानित किया गया.
Gandhi Mandela Award: गुरुवार 18 जुलाई 2024 को नेल्सन मंडेला अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर ग्वाटेमाला की मानवाधिकार कार्यकर्ता,नारीवादी,और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता रिगोबेर्ता मेन्चु तुम को गांधी मंडेला अवॉर्ड 2020 से सम्मानित किया गया. यह अवॉर्ड गांधी मंडेला फाउंडेशन के संस्थापक और महासचिव एडवोकेट नंदन कुमार झा की उपस्थिति में मैक्सिको सिटी में दिया गया. रिगोबर्टा को उनके न्याय और समानता की निरंतर खोज के लिए यह सम्मान दिया गया.
रिगोबर्टा गांधी-मंडेला का उदाहरण
रिगोबर्टा का जीवन गांधी- मंडेला के सिद्धांतों का जीवंत रुप है. यह सम्मान उनके समाज के प्रति लगातार किए जा रहें काम को दर्शाता है कि आज के दौर में भी लोग गांधी और मंडेला के सपनों को जीवित रखा है . पहली बार यह सम्मान साल 2019 में तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को प्रदान किया था जिसमें हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर द्वारा मैक्लोडगंज में आयोजित समारोह के दौरान दलाई लामा को सम्मानित किया था. रिगोबेर्ता मेन्चु तुम दलाई लामा के बाद यह सम्मान पाने वाली दूसरी व्यक्ति हैं.
किसे मिलता है यह सम्मान
इस अवॉर्ड को ऐसे व्यक्ति को दिया जाता है जो महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला के विचारों को आगे बढ़ाते हुए शांति, सामाजिक कार्यों, कल्चर, पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य,जैसे क्षेत्रो में उल्लेखनीय काम करे जिससे समाज को फायदा हो और समाज को एक नई दिशा मिले
रिगोबेर्ता का जीवन आज के लिए प्रेरणा
रिगोबेर्ता मेन्चु तुम एक ग्वाटेमाला की राजनीतिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं .जो किचे जातीय समूह से आती हैं. इनका जन्म 9 जनवरी 1959 को एक गरीब भारतीय किसान परिवार में हुआ था. गृहयुद्ध 1960-1996के दौरान और उसके बाद ग्वाटेमाला के स्वदेशी नारीवादियों के अधिकारों की रक्षा करने और देश में स्वदेशी अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए रिगोबेर्ता ने काफी संघर्ष किया
ग्वाटेमाला में हुए गृहयुद्ध की शुरुवात में ही इनके परिवार के कई सदस्य भाई,पिता सैन्य दमन के शिकार हुए, इस दौरान एक झड़प में इनकी मां की मौत हो गई थी. इतना सब देखने के बाद रिगोबेर्ता ने 1979 में किसान संघ (CUC) की समिति में शामिल हुई और खेतीहर मजदूरों की स्थिति में सुधार और भारतीय किसान जनसंख्या को शिक्षित करने के लिए लिए संघर्ष किया.
रिगोबेर्ता के इस संघर्ष के परिणाम स्वरूप साल 1992 में इनको नोबेल शांति पुरस्कार और वर्ष 1998 में प्रिंस ऑफ ऑस्टुरियस पुरस्कार से सम्मानित किया गया. रिगोबेर्ता के जीवन आत्मकथा पर एक पुस्तक रिगोबेर्ता मेन्चु साल 1983 में प्रकाशित हुई जिसमें उनके जीवन के संघर्ष को दर्शाया गया इस पुस्तक को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी सराहा गया.
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