आज के वक्त अधिकांश लोग लंबी दूरी का सफर फ्लाइट से करना पसंद करते हैं. क्योंकि हजारों किलोमीटर का सफर कुछ ही घंटों में पूरा हो जाता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कोई व्यक्ति अगर लगातार 15-18 घंटे फ्लाइट में सफर करेगा, तो उसके शरीर पर क्या असर पड़ेगा. जी हां, आज हम आपको बताएंगे कि लंबी दूरी का सफर फ्लाइट में करने पर शरीर पर क्या असर पड़ता है.
फ्लाइट का सफर
भारत में अगर आपको एक राज्य से दूसरे राज्य जाना है, तो आपका सफर चंद घंटों में ही पूरा हो जाता है. वहीं विदेश जाने पर भी ये सफर अधिकतम 10-12 घंटों में पूरा हो जाता है. हालांकि सबसे लंबी फ्लाइट का सफर करीब 19 घंटों का नॉन स्टॉप है, जो अमेरिका से सिंगापुर तक जाती है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इतनी लंबी दूरी की फ्लाइट का सफर इंसानी शरीर पर क्या पड़ता है.
जेट लैग
बता दें कि जेट लैग को टाइम जोन चेंज सिंड्रोम भी कहते हैं. इस दौरान थकान, सिर में दर्द, नींद पूरी न होना, चिड़चिड़ापन महसूस होना जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. वहीं अपने काम या किसी दूसरी वजह से जो लोग जल्दी-जल्दी एक टाइम जोन से दूसरे टाइम जोन में ट्रैवल करते हैं, उन्हें जेट लैग की दिक्कत ज्यादा होती है.
रिसर्च के मुताबिक 19 घंटे लंबी नॉन-स्टॉप फ्लाइट का इंसान के शरीर पर कई तरह का असर पड़ता है. वहीं कई पुरानी स्टडीज भी कहती हैं कि 6 घंटे से अधिक की लंबी फ्लाइट में सफर करने पर पैर और जांघों में फ्लूइड जमा हो जाता है. हर पैर में करीब 250 एमएल फ्लूइड जमा होता है. इसके अलावा स्किन भी करीब 1.5 एमएम मोटी हो जाती है. इन लक्षणों को कम होने में करीब 3 दिन का वक्त लगता है. यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के मुताबिक फ्लाइट का सफर जितना लंबा होगा और एयरक्राफ्ट जितनी ज्यादा ऊंचाई पर उड़ेगा, फ्लाइट में सवार पैसेंजर्स पर रेडिएशन का डोज उतना ही अधिक हो जाता है. वहीं पायलट्स की सेहत पर भी इतनी लंबी फ्लाइट्स का बुरा असर पड़ता है और उन्हें थकान महसूस होने लगती है.
लंबी दूरी में 2 से अधिक पायलट
जानकारी के मुताबिक कई देशों में नियम है कि 12 घंटे से ज्यादा की दूरी की फ्लाइट में 4 पायलट जाते हैं. जिसे दो शिफ्ट में रखा जाता है, जिससे पायलट पर तनाव कम पड़े और वो नॉन-स्टॉप फ्लाइट को उस दूरी तक बिना थके लैंड करा सके.
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