(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Religious Punishment: अकाल तख्त ने सुखबीर बादल को घोषित किया तनखैया, जानें ये क्या होता है और इसमें कितनी सजा मिलती है
पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल को सजा सुनाई गई है. सुखबीर सिंह को तनखैया करार दिया गया है, आज हम आपको बताएंगे कि आखिर तनखैया क्या होता है.
पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल को धार्मिक सजा सुनाई गई है. श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह ने सुखबीर को तनखैया करार दे दिया है. सुखबीर बादल पर उनकी सरकार के वक्त डेरा सच्चा सौदा मुखी राम रहीम को माफी देने का आरोप है. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर तनखैया क्या होता है और इसमें कैसी सजा मिलती है.
क्या है मामला
बता दें कि शिरोमणि अकाल दल (एसएडी) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को श्री अकाल तख्त साहिब के पांच सिख महापुरोहितों ने 'तनखैया' (धार्मिक दुराचार का दोषी ) घोषित किया है. सुखबीर बादल को अकाल तख्त साहिब ने 'तनखैया' घोषित करने के साथ ही 15 दिनों के भीतर सुखबीर को एक आम सिख की तरह तख्त के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया गया है. जत्थेदार अकाल तख्त साहिब ज्ञानी रघुबीर सिंह ने इस फैसले की घोषणा की है.
दरअसल रघबीर सिंह ने कहा है कि कि अकाली दल के प्रधान और डिप्टी सीएम रहते हुए सुखबीर बादल ने सिख धर्म के खिलाफ कई फैसले लिए थे, इससे सिख पंथ का भारी नुकसान हुआ है. तनखैया करार देते हुए सुखबीर बादल को एक साधारण सिख की तरह अकाल तख्त पर आकर अपने गुनाहों की माफी मांगने को कहा गया है. अकाली दल के प्रवक्ता विरसा सिंह वल्टोहा का कहना है कि सुखबीर बादल को अकाल तख्त में उनके गुनाह बताए जाएंगे, जिस पर सुखबीर बादल अपना पक्ष रखेंगे.
तनखैया की क्या होती है सजा?
तनखैया एक धार्मिक सजा है. इसके मुताबिक धार्मिक गुनहगार के दोषी का हुक्का-पानी बंद करना होता है. वहीं अगर किसी व्यक्ति को यह सजा सुनाई जाती है, तो ऐसा व्यक्ति ना तो किसी तख्त पर जा सकता है और ना ही किसी से अरदास करा सकता है. वहीं अगर कोई उसके लिए अरदास करे तो उसे भी दोषी माना जाता है. ये सजा उन सिख लोगों को दी जाती है जो अपने धार्मिक नियमों को ताक पर रखकर कोई फैसला लेते हैं. तनखैया के दौरान मिलने वाली सजा का कड़ाई से पालन करना होता है. ऐसे व्यक्ति को ना सिर्फ शारीरिक स्वच्छता का पालन करना होता है बल्कि उसे पांचों ककार (कच्छा, कंघा, कड़ा, केश और कृपाण धारण करके रखने होते हैं. सजा की समयसीमा के दौरान उसे गुरुद्वारा साहिब में ही रहना पड़ता है यानि उसे घर जाने की मनाही होती है.
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