आज इंसान चांद तक पहुंच चुका है. दुनियाभर की अलग-अलग स्पेस एजेंसी चांद को लेकर लगातार अलग-अलग रिसर्च करती हैं. क्योंकि अंतरिक्ष की दुनिया रहस्यमयी होती हैं. आज हम आपको बताएंगे कि चांद को कब सुपरमून कहा जाता है और ये आम दिनों से कैसे अलग और बड़ा दिखता है. 


सुपरमून


अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा की रिपोर्ट के मुताबिक 19 अगस्त से अगले तीन दिनों तक यानी रविवार की सुबह से बुधवार की सुबह तक पूरा चांद दिखाई देगा. बता दें कि साल में चार सुपरमून दिखाई देते हैं. उसमें से पहला सुपर मून आज यानी 19 अगस्त को दिखेगा. दरअसल सुपर मून और ब्लू मून जब साथ होते हैं, तो उसे ‘स्टर्जन मून’ कहते हैं.


सुपर मून का साइज 


बता दें कि चांद जब धरती का चक्कर लगाता है, तब इन दोनों पिंडों के बीच की दूरी बदलती रहती है. चंद्रमा कभी धरती से सबसे दूर की बिंदु (405,500 किलोमीटर) पर होता है, तो कभी धरती के सबसे करीब (363,300 किलोमीटर) दूर होता है. वहीं जब चांद धरती के सबसे करीब होता है, उस दिन को पूर्णिमा यानी (फुल मून) कहा जाता है, वहीं इसे सुपर मून भी कहा जाता है.


कहां से आया सुपर मून का शब्द


बता दें कि सुपर मून का शब्द सबसे पहले 1979 में वैज्ञानिक रिचर्ड नोल ने दिया था. वहीं सामान्य चंद्रमा की तुलना में यह लगभग 30 फीसदी से ज्यादा चमकीला होता है और 14 फीसदी बड़ा दिखाई देता है.


ब्लू मून क्या?


उलट ब्लू मून के मौके पर चांद नीले रंग का नहीं होता है, उस वक्त यह सफेद रंग का ही दिखाई देता है. वहीं ‘ब्लू मून’ का इस्तेमाल 1528 से हो रहा है. जानकारी के मुताबिक ब्लू मून दो तरह के होते हैं, इसमें मौसमी और मासिक है. मौसमी ब्लू मून तब दिखाई देता है, जब एक ही मौसम में चार (वसंत, ग्रीष्म, पतझड़ और सर्दी) पूर्णिमा होती है. आमतौर पर तीसरी पूर्णिमा को ब्लू मून कहा जाता है. आज यानी 19 अगस्त को मौसमी ब्लू मून है.


दूसरे प्रकार का ब्लू मून मासिक होता है. जानकारी के मुताबिक यह तब होता है, जब एक ही महीने में दो पूर्णिमा आ होता है. ऐसे महीने के दूसरे फुल मून को ब्लू मून कहते हैं. 19 अगस्त के बाद अगली पूर्णिमा सितंबर और अक्टूबर में होगी. गौरतलब है कि चांद के पास अपनी कोई रोशनी नहीं होती है. चंद्रमा की सतह से टकराकर सूरज का प्रकाश धरती तक पहुंचता है. इस कारण रात के समय चंद्रमा हमें चमकता हुआ दिखाई देता है.


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