जब कोई आरोपी जेल में बंद होता है या फिर उसकी जमानत होती है तो हमें जमानत, अंतरिम जमानत और अग्रिम जमानत जैसे शब्द आसानी से सुनने को मिल जाते हैं. ऐसे में कई लोगों के मन में ये सवाल उठता है कि आखिर अंतरिम जमानत, जमानत और अग्रिम जमानत में आखिर अंतर क्या होता है. चलिए आज हम इन तीनों के बीच के अंतर को जानते हैं.


क्या होती है जमानत?


कोई व्यक्ति अदालत द्वारा इस आशय के साथ रिहा किया जाता है कि जब अदालत उसकी उपस्थिति के लिए बुलाएगी या निर्देश देगी तो वो अदालत में पेश होगा. साधारण शब्दों में ये कहा जा सकता है कि जमानत किसी अभियुक्त की सशर्त रिहाई है जिसमें आवश्यकता पड़ने पर अदालत में पेश होने का वादा किया जाता है. कुछ लोगों पर जमानत से रिहा होने के लिए एक उपयुक्त राशि भी देनी पड़ती है.


अब सवाल ये उठता है कि आखिर ये ली कैसे जा सकती है. तो बता दें कि जब भी कोई व्यक्ति जो कथित रूप से संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध करता है, उसे पुलिस द्वारा मजिस्ट्रेट के सामने लाया जाता है, तो वो दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 437 के तहत जमानत के लिए आवेदन कर सकता है और मजिस्ट्रेट उसे जमानत पर रिहा कर देगा. वहीं यदि व्यक्ति के अपराध की प्रकृति गंभीर होती है तो अदालत के पास अपना आदेश रद्द करने का भी अधिकार होता है.


अंतरिम जमानत क्या होती है?


वहीं अंतरिम जमानत एक छोटी अवधि की जमानत होती है. कोर्ट ये तब देता है जब रेगुलर बेल की एप्लीकेशन पर सुनवाई चल रही होती है. बता दें जब कोई आरोपी रेगुलर बेल या नियमित जमानत की एप्लीकेशन दायर करता है तो कोर्ट इस मामले में चार्जशीट या केस डायरी की मांग करता है जिससे आम जमानत पर फैसला लिया जा सके. इस पूरी प्रक्रिया में कुछ समय लग जाता है, ऐसे में इस अवधि में आरोपी को हिरासत में रहना पड़ता है साथ ही आरोपी भी अंतरिम जमानत की मांग कर सकता है.


अग्रिम जमानत क्या होती है?


जब किसी व्यक्ति को किसी अपराध के आरोप में गिरफ्तारी की आशंका होती तब अग्रिम जमानत का आवेदन किया जाता है. यदि किसी व्यक्ति को यह लगे की उसे किसी ऐसे अपराध में फंसाया जा सकता है जो अपराध उसने कभी नहीं किया हो. इस दौरान उसे अंग्रिम जमानत भी दी जा सकती है.


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