असम में सरकार ने स्वदेशी मुसलमानों की आबादी के सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण की इजाजत दे दी है. जिसके चलते मियां मुसलमानों में डर है. इनके इतर क्या आपको पता है कि मियां मुसलमानों और स्वदेशी मुुसलमानों में अंतर क्या है. यदि नहीं तो चलिए आज जान लेते हैं.
कौन होते हैं स्वदेशी मुसलमान?
असम सरकार ने पांच मुुस्लिम समुदाय को स्वदेशी मुुसलमान माना है. इन मुसलमानों में राज्य में गोरिया, मोरिया, जोलाह, देसी और सैयद समुुदाय के तौर पर जााने जातेे हैं. इन समुुदायों में गोरिया, मोरिया, जोलाह चाय बागानों के आस-पास बसे हैं.
इन्हें माना गया मियां मुसलमान
निचले असम या ब्रम्हपुत्र के तट पर बसे मुसलमानों को मियां मुसलमान माना गया है. वहीं एक वर्ग ऐसा भी है जो बंगाली बोलता है. उन्हें भी स्वदेशी मुसलमान नहीं माना जा रहा है. अलग-अलग समय पर सरकारों का मानना रहा है कि बॉर्डर होने के कारण असम में पड़ोसी देशों से मुस्लिम आ रहे हैं. उस समय जब पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बना भी नहीं था तब त्रस्त होकर लोग वहां से भागने लगे थे. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, शुरुआत में तो उनपर कोई कड़ाई नहीं हुई, माना ये जा रहा था कि वो लोग अपनेआप वापस लौट जाएंगे. हालांकि वो वापस नहीं लौटे और घुसपैठ अब भी जारी है.
मियां मुसलमानोें का अच्छा खासा वोट बैंक
भले ही मियां मुसलमानों को स्वदेशी नहीं माना जा रहा लेकिन इन मुसलमानों का अच्छा खासा वोट बैंक है. राज्य की कुुल आबादी में 40 प्रतिशत वे मुसलमान हैं जो पहले से ही यहां रहते हैं वहीं 60 प्रतिशत वर्ग कथित तौर पर मियां मुसलमान हैं. जो बाद में यहां आकर बसे हैं. ये मुसलमान बंगाली बोलते हैं और राजनेतिक तौर पर काफी मुखर भी रहे हैं. यही वजह है कि स्वदेशी मुुसलमानों सामाजिक आर्थक सर्वेक्षण की मंजूरी मिलने के बाद मियां मुसलमानों को डर सता रहा है. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, बीजेपी का कहना है कि ये सर्वे मुसलमानों की शिनाख्त के लिए किया जा रहा है, इसमें बंगाली मुसलमानों को डरने या घबराने की जरुरत नहीं है.
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