क्या है वो तरीका, जिससे कंप्यूटर देखकर एक्सपर्ट बताते हैं कि मॉनसून कहां पहुंचा और बारिश कब आएगी?
आप अक्सर मौसम की भविष्यवाणी सुनते होंगे, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आखिर ये मौसम होने क्या वाला है ये कैसे पता चलता है?
आप अपने शहर में अक्सर बारिश होगी या फिर अति बारिश, कब हिट वेब होगी, ठंड का अलर्ट जैसी खबरें सुनते होंगे. मौसम होने क्या वाला है ये खबर मौसम विभाग द्वारा पहले ही बता दिया जाता है. ऐसे में क्या कभी सोचा है कि आखिर आने वाले समय में मौसम कैसा होगा ये मौसम विभाग को कैसे पता चलता है? साथ ही कई बार मौसम विभाग अलर्ट भी जारी करता है, तो आखिर मौसम विभाग को ये सारी जानकारियां मिलती कहां से हैं? चलिए हम आपके सभी सवालों के जवाब लेकर आए हैं.
ऐसे लगाया जाता है मौसम का पूर्वानुमान
मौसम के पूर्वानुमान के लिए कई फैक्टर्स जिम्मेदार होते हैं. जब भी आने वाले समय में मौसम का पता लगाना होता है तो इसके लिए तमाम यंत्रों की सहायता से वातावरण और जमीन की सतह का तापमान, नमी, हवा की गति और दिशा, ओस, बादलों की स्थिति आदि को चेक जाता है.
इसके लिए कई यंत्रों का भी इस्तेमाल किया जाता है. जैसे जब बारिश का पता लगाना होता है तो वर्षामापी यंत्र, हवा की गति मापने के लिए एनीमोमीटर, हवा की दिशा के लिए विंडवेन, वाष्पीकरण की दर को मापने के लिए पेन-इवेपोरीमीटर, सनसाइन रिकॉर्डर, ओस के लिए ड्यूगेज, जमीन का तापमान नापने के लिए थर्मामीटर का प्रयोग किया जाता है.
डेटा जुटाने के काम आता है हाई स्पीड कंप्यूटर
मौसम का डेटा जुटाने के लिए हाई-स्पीड कंप्यूटर, मौसम संबंधी उपग्रह, एयर बैलून और मौसम रडार बहुत जरुरी होती है. जब ये डेटा कलेक्ट हो जाता है तो फिर इसका अध्ययन किया जाता है, साथ ही वर्तमान डेटा और मौसम के पिछले डेटा को भी देखा जाता है. इसके बाद मौसम की भविष्यवाणी होती है.
कैसे पता चलता है कहां पड़ेगी गर्मी और कहां होगी बारिश?
मौसम विभाग के पास कई तरह के सेटेलाइट उपलब्ध हैं, जो बादलों की तस्वीर भेजते रहते हैं. इससे मौसम विभाग के लोगों को ये अनुमान लगता रहता है कि कहां बादल हैं और कहां नहीं हैं. हालांकि बादलों को देखकर सिर्फ इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस जगह धूप निकलेगी और किस जगह बादल छाए रहने वाले हैं.
हालांकि बारिश होने वाली है या नहीं इसका पता इससे नहीं चलता. बारिश का अनुमान लगाने के लिए ये देखना पड़ता है कि बादलों में कितना पानी है. इसके लिए धरती से आकाश की ओर रडार छोड़ दी जाती है. उन रडार के जरिए भेजी गई तरंगें बादलों से टकरा कर वापस आती हैं और उसके बाद उनके अध्ययन से ये निष्कर्ष निकलता है कि कहां बारिश होने की संभावना है.
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