किसी पुलिसवाले से पिस्तौल छीनने पर क्या मिलती है सजा? इस धारा में दर्ज होता है मुकदमा
कई बार गर्मागर्मी में लोग पुलिस की पिस्तौल छिनने की भूल कर बैठते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये एक अपराध है.
पुलिसवाले से पिस्तौल छीनना एक गंभीर अपराध है. यह न केवल एक व्यक्तिगत हमला है बल्कि कानून को चुनौती देने जैसा भी है. भारत में इस तरह के अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता (IPC) में कई धाराएं लागू होती हैं. चलिए जानते हैं कि इस अपराध के लिए क्या सजा का प्रावधान है और कौन-सी धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज होता है.
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किसी पुलिस वाले की पिस्तौल छिनने पर इन धाराओं में हो सकती है सजा
धारा 353: किसी लोक सेवक को अपने कर्तव्य के पालन से रोकना या बाधा डालना.
धारा 332: किसी लोक सेवक को जानबूझकर चोट पहुंचाना.
धारा 307: हत्या का प्रयास.
धारा 395: डकैती.
धारा 397: डकैती के दौरान हथियार का प्रयोग.
आर्म्स एक्ट: अगर पिस्तौल लाइसेंस के बिना थी तो आर्म्स एक्ट के तहत भी मामला दर्ज किया जा सकता है.
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कौन सी धारा कब होती है लागू?
धारा 353: यह धारा तब लागू होती है जब कोई व्यक्ति पुलिसवाले को अपनी ड्यूटी करने से रोकता है या बाधा डालता है.
धारा 332: अगर पिस्तौल छीनते समय पुलिसवाले को चोट पहुंचती है तो यह धारा लागू होती है.
धारा 307: अगर पिस्तौल का इस्तेमाल किसी को मारने के इरादे से किया जाता है तो यह धारा लागू होती है.
धारा 395 और 397: अगर पिस्तौल छीनने के साथ ही लूटपाट या डकैती की घटना होती है तो ये धाराएं लागू होती हैं.
आर्म्स एक्ट: अगर पिस्तौल लाइसेंस के बिना थी तो आर्म्स एक्ट के तहत भी मामला दर्ज किया जाता है.
कहां मुकदमा होता है दर्ज?
इन धाराओं के तहत सजा का प्रावधान अपराध की गंभीरता और अन्य परिस्थितियों पर निर्भर करता है. सजा में कारावास, जुर्माना या दोनों शामिल हो सकते हैं. कुछ मामलों में उम्रकैद की सजा भी हो सकती है. वहीं बता दें इस तरह के मामले में मुकदमा संबंधित पुलिस थाने में दर्ज किया जाता है. पुलिस जांच करती है और फिर चार्जशीट अदालत में पेश करती है.
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