Dark Web में ऐसा क्या होता है जो पुलिस भी अपराधी को ट्रेस नहीं कर पाती?
डार्क वेब पर अपराधी को सिर्फ आईपी एड्रेस के जरिए आसानी से ट्रेस नहीं किया जा सकता है. ऐसे ऐड्रेस को ट्रेस करने के लिए साइबर एक्सपर्ट्स की आवश्यकता पड़ती है.
Dark Web: डार्क वेब में वो सभी गैर कानूनी काम होते हैं जिसे ओपन वेब पर नहीं किया जा सकता. सरल भाषा में आप ये समझ लीजिए कि जितने भी अवैध काम इंटरनेट के जरिए होते हैं वो डार्क वेब पर ही किए जाते हैं. डार्क वेब में कंटेंट पर कोई रेगुलेशन या किसी चीज की पाबंदी नहीं है. इसका इस्तेमाल अधिकतर हैकर्स, फ्रॉड करने वाले व्यक्ति या अवैध तरीके से काम करने वाले लोग करते हैं. ऐसे में सवाल यह बनता है कि आखिर क्यों पुलिस भी इन अपराधियों को आसानी से नहीं पकड़ पाती है? आइए जानते हैं यह कैसे काम करता है और पुलिस इन अपराधियों को क्यों ट्रेस नहीं कर पाती है...
डार्क वेब पर क्या अपराध करते हैं अपराधी?
इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है इसे हर इंसान एक्सेस नहीं कर सकता है. डार्क वेब पर नो कंटेंट रेग्युलेशन पॉलिसी होती है. इसपर हुए किसी भी अपराध की ट्रेसिंग बेहद मुश्किल होती है. डार्कनेट पर आतंकवाद के अलावा पोर्नोग्राफी, चाइल्ड पोर्नोग्राफी, सेक्सटॉर्शन और ब्लैकमेलिंग जैसे अपराध होते हैं. हथियारों तक की सप्लाई इसके जरिए की जाती है. ड्रग तस्करी और ह्युमन ट्रैफिकिंग के लिए भी यहीं से रास्ता तैयार किया जाता है.
डार्क वेब पर होते हैं इतने साइबर अपराध
डार्कनेट पर बेसा माफिया और अजरबैजान ईगल्स जैसी वेबसाइटों के जरिए बड़े कॉन्ट्रैक्ट किलिंग जैसी वारदातों को अंजाम दिया जाता था. ऐसी ढेरों वेबसाइटें हैं जिनके जरिए साइबर अपराधों को अंजाम दिया जाता है. लोलिता सिटी और प्ले पेन जैसी डार्कनेट वेबसाइटों पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी के कंटेंट डाले जाते हैं. डार्क वेब पर क्रिप्टो करेंसी, फेक ड्राइविंग लाइसेंस और फेक पासपोर्ट का भी कारोबार चलता है. बहुत सारी डार्कनेट वेबसाइटें हैं, जहां से सेक्स रैकेट ऑपरेट होते हैं.
पुलिस क्यों नहीं कर पाती है ट्रेस?
डार्कनेट पर एक्टिव रहने वाले लोग कहां से ऐसी वेबसाइट्स को ऑपरेट करते हैं इसका कुछ पता नहीं चल पाता है. उन्हें सिर्फ आईपी एड्रेस के जरिए आसानी से ट्रेस नहीं किया जा सकता है. ऐसे ऐड्रेस को ट्रेस करने के लिए साइबर एक्सपर्ट्स की आवश्यकता पड़ती है, जिसकी कमी हर डिपार्टमेंट में रहती है. ट्रेनिंग, इन्फॉर्मेशन शेयरिंग और नए फोरेंसिक लैब्स के न होने की वजह से भी पुलिस को अपराधियों का पता लगाने में मुश्किलें आती हैं.
डार्कनेट पर सिर्फ अपराध ही नहीं होते हैं, ऐसे में यहां हर एक्टिविटी पर नजर रख पाना भी बेहद चुनौतीपूर्ण है. अगर ट्रेसिंग हो भी जाती है तो पता चलता है कि डार्कनेट को ऑपरेट करने वाला गैंग विदेश में कहीं बैठा है. इसलिए डार्क वेब पर चल रहे अपराधों को रोकना इंटेलिजेंस एजेंसियों के लिए पेचीदा काम है.
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