ये लिक्विड कोकीन क्या होता है? कैसे ड्रग्स तस्करों के लिए सबसे खास हो गया है ये
लिक्विड कोकीन, पाउडर कोकीन से अलग होती है. दरअसल, लिक्विड कोकीन घोल के रूप में होता है और इसमें कोकीन की गंध बिल्कुल नहीं होती. ऐसे में इसे पहचानना बहुत मुश्किल होता है.
इस दुनिया में नशे का कारोबार आज से नहीं बल्कि सदियों से होता आ रहा है. हालांकि, समय समय पर नशा करने वाला प्रोडक्ट बदलता रहता है. कभी शराब थी, तो कभी पाउडर वाले ड्रग्स...लेकिन अब बाजार में लिक्विड कोकीन आ गया है. ये तेजी नशा करने वालों के बीच तो पॉपुलर हो रहा है, इसके साथ-साथ ये लिक्विड कोकीन स्मग्लरों की भी खास बन गई है. इसके पीछे की वजह ये है कि इसे ट्रेस कर पाना बेहद मुश्किल होता है और आसानी से ये किसी भी मशीन के स्कैन में नहीं आती.
चर्चा में क्यों है लिक्विड कोकीन?
पिछले दिनों दिल्ली एयरपोर्ट पर एक केनिया की महिला को गिरफ्तार किया गया, जिसके पास से दो बोतल बरामद हुई जिसमें लिक्विड कोकीन भरा हुआ था. बाजार में इस दो बोतल लिक्विड कोकीन की कीमत 13 करोड़ रुपये से ज्यादा बताई जा रही है. गिरफ्तार हुई महिला की उम्र 25 साल है जो इथियोपिया की रहने वाली है. अधिकारियों का कहना है कि ये दो बोतल लिक्विड कोकीन महिला को नैरोबी हवाई अड्डे पर दिया गया जिसे दिल्ली में एक शख्स को देनी थी.
क्या होती है लिक्विड कोकीन?
लिक्विड कोकीन इस वक्त पूरी दुनिया में तेजी से लोकप्रिय हो रही है. इसका कारण ये है कि तस्कर इसे आसानी से एक जगह से दूसरी जगह तस्करी कर देते हैं और इसका नशा करने वाले भी इसे आराम से लेकर घूम सकते हैं, क्योंकि ये इस तरह के फॉर्म में होता है कि दूर से देखने पर आपको समझ ही नहीं आएगा कि ये कोकीन है. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि लिक्विड कोकीन को बनाने के लिए पानी, ग्लूकोज, सेल्यूलोज या लैक्टोज जैसे रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है. इन तमाम रसायनों के साथ कोकीन मिला दिया जाता है और फिर उसे किसी भी तरह की बोतल में भर कर एक जगह से दूसरी जगह भेज दिया जाता है.
ये आसानी से ट्रेस क्यों नहीं होता?
लिक्विड कोकीन, पाउडर कोकीन से अलग होती है. दरअसल, लिक्विड कोकीन घोल के रूप में होता है और इसमें कोकीन की गंध बिल्कुल नहीं होती. ऐसे में इसे पहचानना बहुत मुश्किल होता है. वहीं यूरोपियन मॉनिटरिंग सेंटर फॉर ड्रग्स एंड ड्रग एडिक्शन (EMCDDA) की एक रिपोर्ट के अनुसार देखें तो लिक्विड कोकीन का पता लगाना बेहद मुश्किल है क्योंकि इसे बंदरगाहों, एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशनों पर लगाये गये स्कैनर से भी नहीं पकड़ा जा सकता. दरअसल, इसकी रेडियोलॉजिकल क्वालिटी पाउडर कोकीन से बहुत अलग होती है.
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