क्या आप एक ऐसी शादी की कल्पना करते हैं जहां आप बिना किसी धार्मिक रीति-रिवाजों के भी शादी के बंधन में बंध सकते हैं. यहां आपको न ही पंडित बुलाना होता है न ही बहुत पैसे खर्च करने की जरुरत होती है. साथ ही इस शादी को कानूनी मान्यता भी मिलती है. दरअसल हम सुयमरियाथाई विवाह यानी सेल्फरेस्पेक्ट मैरिज की बात कर रहे हैं. 


क्या होती है सेल्फरेस्पेक्ट मैरिज?
आत्मसम्मान विवाह में दो लोग बिना किसी रीति-रिवाज का पालन किए हुए शादी करते हैं. ऐसी शादियों को कानूनी रूप से पंजीकृत कराना जरूरी होता है. इस विवाह का मकसद किसी भी शादी की प्रक्रिया को सरल बनाना और रीति-रिवाजों से मुक्त रखना था. साल 1968 में हिंदू विवाह अधिनियम 1995 (संशोधित) को विधानसभा में पारित किया गया था. इस अधिनियम में धारा 7ए को जोड़ा गया और इसी धारा के तहत आत्मसम्मान विवाह को वैध घोषित किया गया था.


कैसे शुरू हुआ आत्मसम्मान विवाह?
समाज सुधारक और नेता पेरियार ई.वी. रामास्वामी ने तमिलनाडु में साल 1925 में आत्मसम्मान आंदोलन की शुरुआत की थी. जिसका मकसद जात-पात के भेदभाव को दूर करना और समाज में मौजूद तथाकथित लोअर कास्ट के लोगों को समाज में सम्मान दिलाना था. आत्मसम्मान आंदोलन से ही आत्मसम्मान विवाह निकला था. बता दें पहला आत्मसम्मान विवाह साल 1928 में करवाया गया था. इस विवाह में किसी भी धर्म या जाति के लोग एक-दूूसरे को अपने जीवन साथी के रूप में चुन सकते हैं. दिलचस्प बात ये है कि इस तरह के विवाह को सिर्फ तमिलनाडु में ही मान्यता है. अब तक कई जोड़े सेल्फरेस्पेक्ट मैरिज कर चुके हैं.  


सुप्रीम कोर्ट ने बदला मद्रास हाईकोर्ट का फैसला
आत्मसम्मान विवाह हमेेशा से विवादों का हिस्सा भी रहा है. रीति-रिवाजों के बिना की गई इस शादी का कई लोग विरोध भी करते हैं. मद्रास हाईकोर्ट ने भी अधिवक्ताओं द्वारा कराई जाने वाली इस शादी को साल 2014 में अवैध करार दिया था. हालांकि साल 2023 में मद्रास हाईकोर्ट के इस फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वैध माना था.            


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