ये ट्रांसपेरेंट वुड क्या बला है...क्या सच में लकड़ी से बन सकता है शीशा
ये कमाल सबसे पहले जर्मनी के एक वैज्ञानिक Siegfried Fink ने किया था. उन्होंने Lignin नाम के सब्सटेंस को मॉडिफाई और रिमूव कर के ये कारनामा किया था.
विज्ञान कितनी तेजी से तरक्की कर रहा है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि अब विज्ञान तकनीक के माध्यम से लकड़ी को शीशे में बदल सकता है. यानी लकड़ी को इस तरह से बना दिया जाता है कि वह देखने में शीशे की तरह लगती है. चलिए जानते हैं कि आखिर वैज्ञानिक ऐसा कैसे कर रहे हैं और इसके पीछे का कारण क्या है.
क्या होगा ट्रांसपेरेंट वुड से
इस पर स्वीडन के केटीएच रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के रिसर्चर लार्स बर्गलुंड और मैरीलैंड विश्वविद्यालय (यूएम) के रिसर्चर्स ने एक विवरण दिया है. जिसमें उन्होंने बताया है कि कैसे ये ट्रांसपेरेंट वुड भविष्य में मोबाइल फोन की स्क्रीन और टीवी, लैपटॉप की स्क्रीन में तब्दील हो जाएगा. इसके अलावा इसे घर में लगे शीशे की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकेगा. दरअसल, ये ट्रांसपेरेंट वुड आम शीशे से कई गुना ज्यादा मजबूत और टिकाऊ होता है, इसलिए शीशे की जगह जब इसका इस्तेमाल होगा तो स्क्रीन के टूटने का खतरा कम हो जाएगा.
लकड़ी से शीशा कैसे बन गया
ये कमाल सबसे पहले जर्मनी के एक वैज्ञानिक Siegfried Fink ने किया था. उन्होंने Lignin नाम के सब्सटेंस को मॉडिफाई और रिमूव कर के ये कारनामा किया था. हालांकि, इसके बाद इसमें और कई वैज्ञानिकों ने अलग-अलग तरह की तब्दीलियां की हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि लकड़ी में ये Lignin क्या होता है. दरअसल, Lignin एक ग्लू जैसासब्सटेंस होता है जो पौधे में पानी और न्यूट्रिएंट्स ले जाने में मदद करता है. इसी की वजह से पौधा बढ़ता है और पेड़ का रंग भूरा दिखाई देता है.
ये स्क्रीन कैसे बनेगी
अब सवाल उठता है कि लकड़ी कितना भी साफ हो जाए, वो मोबाइल फोन या टीवी, लैपटॉप की स्क्रीन कैसे बन सकती है. आपको बता दें, वैज्ञानिक इसे इतना थिन और क्लीयर कर देते हैं कि इसके आर पार 80 से 90 फीसदी रौशनी चली जाती है. यानी इसमें थोड़ा सा बदलाव कर इसे स्क्रीन बनाया जा सकता है. इसके अलावा इसकी मजबूती किसी भी आम शीशे से कई गुना ज्यादा है.
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