पोस्टमार्टम रिपोर्ट में क्या-क्या लिखा होता है? जानें कैसे खुलते हैं मौत के राज
किसी भी अननेचुरल मौत में पोस्टमार्टम रिपोर्ट का बहुत अहमियत होता है. क्योंकि इस रिपोर्ट के जरिए ही मौत के सही कारण का पता चल पाता है. जानिए पोस्टमार्टम की शुरूआत कैसे हुई थी.
कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में जूनियर डॉक्टर की रेप के बाद हत्या मामले में जांच लगातार जारी है. इस बीच सोशल मीडिया में पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स को लेकर कई तरह के भ्रामक दावे भी किए जा रहे हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पोस्टमार्टम क्या होता है और इसमें किस तरह की जानकारियां सामने आती हैं.
पोस्टमार्टम
पोस्टमार्टम मेडिकल सांइस में एक जरूरी प्रकिया होती है. वहीं किसी भी तरह असामान्य मौतों में तो ये रिपोर्ट और कारगर होती है. क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के जरिए ये पता चलता है कि मौत किन कारणों हुआ है और इसकी वजह क्या है. आज हम आपको पोर्टमार्टम से जुड़ा सभी जरूरी तथ्य बताएंगे.
पोस्टमार्टम की शुरूआत
सबसे पहले ये जानते हैं कि पोस्टमार्टम की शुरूआत कब हुई थी. बता दें कि पोस्टमार्टम को ऑटोप्सी भी कहा जाता है. 3500BC में सबसे पहले इराक में एक जानवर का शरीर खोला गया था. तब ऐसी मान्यता थी कि भगवान का संदेश जानने के लिए जानवरों के अंग को एग्जामिन करना जरूरी था. उसके बाद 14वीं शताब्दी में इटली की यूनिवर्सिटियों में डाइसेक्शन को पढ़ाना शुरू किया गया था. भारत के इतिहास में माना जाता है कि चाणक्य ने सबसे पहले ऑटोप्सी की अहमियत को समझा था. उन्होंने माना था कि मौत का कारण पता करने में पोस्टमार्टम सबसे जरूरी है. इसी कड़ी में महर्षि सुश्रुत का नाम भी लिया जाता है. उन्हें भारत में फादर ऑफ सर्जरी कहा जाता है. इतना ही नहीं उनकी किताब सुश्रुत संहिता में सर्जरी से जुड़ी वो जानकारियां मौजूद हैं, जो आज भी डॉक्टरों को पढ़ाई जाती हैं.
पोस्टमार्टम का प्रकार?
पोस्टमार्टम को सरल शब्दों में समझाते हुए फॉरेंसिक एक्सपर्ट डॉक्टर आकृति बताती हैं कि अगर किसी की अननेचुरल या कह लीजिए अस्वभाविक मौत होती है, उस स्थिति में पोस्टमार्टम किया जाता है. अगर मौत का कारण जानना है, शव की पहचान करनी, मौत का सही समय जानना है, तब भी पोस्टमार्टम करना होता है. कई बार शव डीकंपोज (विघटित) हो जाता है, उस स्थिति में भी पोस्टमार्टम मौत का सटीक समय बता सकता है. पोस्टमार्टम के दो प्रकार होते हैं. मेडिको लीगल पोस्टमार्टम होता है, जहां पर सिर्फ पुलिस या मजिस्ट्रेट के कहने पर ऑटोप्सी की जाती है. जितनी भी संदिग्ध मौते होती हैं या जहां पर पुलिस को शक होता है, तब मेडिको लीगल पोस्टमार्टम किया जाता है. वहीं क्लिनिकल या हॉस्पिटल पोस्टमार्टम शोध के उदेश्य से किया जाता है. जब किसी तरह की रिसर्च करनी होती है, तब क्लिनिकल पोस्टमार्टम होता है. इसमें मृतक के रिश्तेदारों की सहमति जरूरी होती है.
कब तक देनी होती है पोस्टमार्टम रिपोर्ट ?
पोस्टमार्टम को लेकर अलग-अलग राज्यों में अलग नियम होते हैं. पिछले साल पंजाब और हरियाणा को लेकर कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि 24 घंटे के अंदर पोस्टमार्टम रिपोर्ट देनी होगी. इसमें किसी भी तरह की देरी नहीं की जा सकती है. वहीं एक सवाल उठता है कि क्या पोस्टमार्टम में भी कोई शुरुआती रिपोर्ट होती है और क्या कभी बाद में डिटेल वाली रिपोर्ट दी जाती है? बता दें कि पोस्टमार्टम में शुरुआती रिपोर्ट जैसा कुछ नहीं होता है. पोस्टमार्टम एक मेडिको लीगल डॉक्यूमेंट है, ये बहुत बड़ा सबूत होता है. इसकी रिपोर्ट तो आपको तुरंत ही देनी होती है. इसमें आप चार-पांच दिन का कोई गैप नहीं कर सकते हैं.
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