कहा जाता है श्रीराम के राज्य में सबकुछ बहुत अच्छा था, उस वक्त न कोई बीमार पड़ता था न किसी को कोई समस्या थी. उस समय बारिश भी लोगों के मन के मुताबिक होती थी. वहीं मौसम भी लोगों के अनुकूल होता था. उस समय न ही ज्यादा ठंंड पड़ती थी न ही ज्यादा गर्मी. कहा ये भी जाता है कि उस समय हर व्यक्ति बेहद खुश था, लेकिन क्या आप जानते हैं कि राम के समय राज्य को चलाने केे लिए राजकोष कहां से आता था. यदि नहीं तो चलिए जानते हैं कि उस समय टैक्स लेनेे की व्यवस्था कैसी थी और उस समय के नियम और कानून कैसे थे.


कैसी थी राम राज्य में टैक्स लेने की व्यवस्था?
राम राज्य में लोग काफी समृद्ध थे. उस समय इसी पर सबसे ज्यादा ध्यान भी दिया जाता था. सीमा के विस्तार और प्रजा की सुख-समृद्धि के लिए राम ने अश्वमेघ यज्ञ का भी आयोजन कराया था. वहीं उस समय में लोगों के लिए अनाज भी पर्याप्त मात्रा में था. इसकी सबसे बड़ी वजह लोगों से टैक्स लेने के नियम थे.


जी हां राम राज्य में दो नियमों से टैक्स लिया जाता था. रामचरित मानस में तुलसीदास ने लिखा है, "मणि-माणिक महंगे किए, सहजे तृण, जल, नाज. तुलसी सोइ जानिए राम गरीब नवाज" यानी गहनों को महंगा किया जाए जिससे लोग उसे आसानी से न खरीद पाएं और जल और अनाज को आसानी से उपलब्ध कराया जा सके.


वहीं तुलसीदास ने येे भी लिखा, "बरसत हरसत सब लखें, करसत लखे न कोय, तुलसी प्रजा सुभाग से, भूप भानु सो होय" यानी टैक्स इतना ही लेना चाहिए, जिससे आम लोगों पर इसका असर न पड़े और वो परेेशान न हों. साथ ही उस टैक्स का इस्तेमाल क्या किया जा रहा है ये भी प्रजा को पता हो.


राम राज्य में कैसा था कानून?
राम राज्य में कानून की बात करें तो उस समय शासन व्यवस्था कुछ इस तरह बनाई गई थी कि इसेे व्यक्ति केंद्रित रखा गया था. इसके अलावा राज्य में राजा को सलाह देनेे के लिए एक सभा बनाई गई थी. इस सभा में मुख्य रूप से महामंत्री, सेनापति और राजगुरु शामिल थे. यदि किसी मामले में निर्णय तक पहुंचा जा रहा है तो उसका आखिरी फैसला सभा के द्वारा ही किया जाता था.


हालांकि राम राज्य में एक-दो अपराध को छोड़ दिया जाए तो किसी भी अपराध का जिक्र नहीं है.


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