Bees: सोचिए धरती से सारी मधुमक्खियां गायब हो गई हैं! कैसा लगा रहा है...? बहुत लोग सोच रहे होंगे कि इससे क्या ही फर्क पड़ेगा, सिर्फ शुद्ध शहद ही तो खाने को नहीं मिलेगा, बाकी तो कुछ नहीं बदलेगा. अगर आपको भी ऐसा ही लगता है तो आप गलत हैं. क्योंकि, दुनिया में सिर्फ शहद बनाना ही मधुमक्खियों का काम नहीं है. इंसान के अस्तित्व में इनकी उपयोगिता इतनी ज्यादा है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है. क्या आप जानते हैं इस एक छोटे से जीव के गायब हो जाने से आपके जीवन में कई बड़े बदलाव आ सकते हैं? आइए समझाते हैं कैसे...?
पारिस्थितिक तंत्र में एक-दूसरे पर निर्भरता
दरअसल, धरती पर हर जीव और वस्तु पारिस्थितिक तंत्र के अंतर्गत होती है और सभी जीव एक दूसरे पर किसी न किसी तरह से आश्रित हैं. दुनियाभर में मधुमक्खियों पर कई शोध और अध्ययन किए जा चुके हैं, ज्यादातर सभी ने मधुमक्खियों के अस्तित्व को खतरे में बताया है. यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र ने 2017 में पारिस्थितिक तंत्र, खाद्य उत्पादन और समग्र जैव विविधता के लिए मधुमक्खियों के महत्व समझने के लिए भी जोर दिया था.
75% फसलें परागण पर आधारित
शहद बनाने के अलावा मधुमक्खियां परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. परागण वो प्रक्रिया है, जिसमें फूल के नर भाग से पराग को मादा भाग में स्थानांतरित किया जाता है और यह काम मधुमक्खियों सहित तितलियां, भंवरे और अन्य कीट-पतंगे करते हैं. दुनिया की प्रमुख खाद्य फसलों में से लगभग 75% फसलें काफी हद तक मधुमक्खियों जैसे परागणकों पर होती हैं. इन फसलों में सब्जियां और फल आदि शामिल हैं जो हमारे पोषक आहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.
घट रही हैं मधुमक्खियां
ब्रिटानिका की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में मधुमक्खियों की लगभग 20,000 प्रजातियां हैं और ये महत्वपूर्ण परागणकर्ता हैं. लेकिन अफसोस की बात है कि दुनिया भर में सभी प्रकार की मधुमक्खियां घट रही हैं. दुनियाभर में कई तरह के अनाज और पौधे मधुमक्खियों से परागित होते हैं. खाने का एक तिहाई भाग मधुमक्खियां परागित करती हैं. ऐसे में अगर मधुमक्खियां खत्म हो जाएं तो हमारे लिए भोजन की भारी समस्या पैदा होगी.
अगर खत्म हो गई तो क्या होगा?
जैव विविधता पर प्रभाव
मधुमक्खियां नहीं होंगी तो फूलों के पौधों की विविधता और प्रचुरता कम हो जाएगी. ऐसे में उन पौधों पर निर्भर रहने वाले जीवों के जीवन पर बुरा असर पड़ेगा.
खाद्य उत्पादन में गिरावट
मधुमक्खियों के न होने का सीधा असर फसल की पैदावार और कृषि उत्पादकता में भारी गिरावट के तौर पर देखने को मिलेगा. टमाटर, सेब, बादाम और कॉफी जैसी कई ऐसी फसलें है, जो मुख्यतः मधुमक्खी परागण पर निर्भर करती हैं.
पारिस्थितिक असंतुलन
विशेष रूप से मधुमक्खी परागण पर निर्भर पौधे विलुप्त हो सकते हैं. यह रिएक्शन एक चेन की तरह होगी, जिसमें अगर एक कड़ी भी गायब हुई तो आगे की पूरी चेन ही गायब हो जायेगी. क्योंकि पौधों के गायब होने का असर इनपर निर्भर रहने वाले जीवों पर भी पड़ेगा. इसमें इंसान भी शामिल होंगे.
कहने का अर्थ है कि इस सिस्टम में हर छोटी से छोटी चीज की अपनी एक अलग महत्ता है. ऐसे में में उसका गायब होना बड़े बदलाव का कारण बन सकता है. मधुमक्खी का गायब होना भी इसी प्रकार का बदलाव होगा.