क्या आपने कभी सोचा है कि कब्रों पर बड़ी-बड़ी घंटियां क्यों लगाई जाती थीं? यह एक ऐसी परंपरा है जो सदियों से चली आ रही है, लेकिन इसकी वजह जानकर आप हैरान रह जाएंगे. ऐसे में चलिए जानते हैं कि आखिर ये परंपरा क्यों निभाई जाती थी और इसके पीछे क्या कारण थे.
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कैसे शुरू हुआ कब्रों पर घंटी लगाने की परंपरा?
कब्रों पर घंटी लगाने की परंपरा का इतिहास बहुत पुराना है. यह परंपरा कई संस्कृतियों में पाई जाती थी. माना जाता है कि यह परंपरा यूरोप से शुरू हुई थी और फिर दुनिया के अन्य हिस्सों में फैल गई. इस परंपरा को निभाने के पीछे कई कारण बताए जाते हैं. दरअसल इसके पीछे एक खास कारण ये था ताकि जिंदालोगों को दफन होने से बचाया जा सके. उस समय मेडिकल साइंस उतना विकसित नहीं था जितना आज है. कई बार लोगों को गलती से जिंदा दफना दिया जाता था. ऐसी स्थिति में अगर दफन व्यक्ति होश में आ जाता था, तो वह घंटी बजाकर अपनी मौजूदगी का संकेत दे सकता था. वहीं कुछ संस्कृतियों में यह मान्यता थी कि मौत के बाद आत्माएं भटकती रहती हैं. घंटी की आवाज आत्माओं को शांत करने और उन्हें स्वर्ग की ओर जाने में मदद करती थी.
साथ ही इसके पीछे का एक कारण लोगों को बुरी नजर से बचाना भी था. कई संस्कृतियों में यह माना जाता है कि बुरी नजर लगने से व्यक्ति बीमार पड़ सकता है या उसकी मृत्यु हो सकती है. घंटी की आवाज बुरी नजर को दूर भगाने का काम करती है. साथ ही कुछ धर्मों में घंटी को पवित्र माना जाता है. घंटी की आवाज देवताओं को खुश करने और आशीर्वाद पाने के लिए बजाई जाती थी.
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कब बंद हुई कब्रों पर घंटी लगाने की परंपरा?
आजकल कब्रों पर घंटी लगाने की परंपरा लगभग खत्म हो चुकी है. दरअसल आज के समय में मेडिकल साइंस काफी विकसित हो चुका है. अब लोगों को गलती से जिंदा दफनाने की संभावना बहुत कम है. साथ ही लोगों के विश्वासों में भी बदलाव आया है. अब आत्माओं पर बुरी नजर में लोग कम ही विश्वास करते हैं. इसके अलावा कई देशों में कब्रों पर घंटी लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.
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