अगर कोई व्यक्ति किसी की हत्या कर दे तो उस पर आईपीसी की धारा 302 के तहत कार्रवाई होती है. लेकिन अगर किसी हमले में व्यक्ति की जान ना जाए और उसे गंभीर चोट पहुंचे तब हमला करने वाले आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 307 के तहत कार्रवाई होती है. इसे अटेम्प्ट टू मर्डर का केस भी कहते हैं. भारतीय न्याय संहिता में ये धारा, धारा 109 और 110 हो गई है. चलिए आज आपको बताते हैं कि पुलिस ये धारा किसी पर किन परिस्थितियों में लगाती है.


धारा 307 को पहले समझिए


भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 307 हत्या के प्रयास से संबंधित है. इस धारा के अंतर्गत उन मामलों को संज्ञा लिया जाता है जहां किसी व्यक्ति ने जानबूझकर या अनजाने में दूसरे व्यक्ति की जान लेने का प्रयास किया हो. धारा 307 के तहत आरोपित व्यक्ति को उम्रकैद या 10 वर्ष तक की जेल की सजा हो सकती है, इसके साथ ही उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है.


पुलिस किन परिस्थितियों में धारा 307 का इस्तेमाल करती है


धारा 307 के तहत पुलिस तभी केस दर्ज करती है जब आरोपी ने किसी अन्य व्यक्ति की हत्या का प्रयास किया हो. इस प्रयास में आरोपी की मंशा महत्वपूर्ण है. अगर यह सिद्ध हो जाता है कि आरोपी का इरादा हत्या करना था, तो धारा 307 लागू की जाएगी. लेकिन अगर, किसी व्यक्ति से अनजाने में ऐसी कोई घटना हो जाए, जिससे सामने वाला व्यक्ति घायल हो जाए तो उस पर 307 के तहत कार्रवाई नहीं होगी. हालांकि, व्यक्ति ने हमला जानबूझकर किया है या अनजाने में इसका फैसला जांच के बाद पुलिस और अदालत करती है.


शरीर के इन हिस्सों पर लगा होना चाहिए चोट


शरीर के कुछ हिस्से हैं, जहां चोट लगने पर पुलिस धारा 307 के तहत मामला दर्ज करती है. जैसे- गर्दन पर हमला करना. अगर किसी व्यक्ति ने किसी पर चाकू से वार किया हो तो यह स्पष्ट रूप से हत्या के प्रयास की मंशा को दिखाता है. गर्दन के अलावा छाती पर हमला. अगर किसी व्यक्ति की छाती पर चाकू से या किसी भी ऐसी चीज से हमला किया गया हो, जिससे सामने वाले व्यक्ति की जान जा सकती है तो हमलावर पर धारा 307 के तहत मामला दर्ज होगा. इसके अलावा पेट, पीठ, सिर और शरीर के किसी भी ऐसे अंग पर अगर हमला किया गया हो जिससे किसी व्यक्ति की जान जा सकती है, तो मामला धारा 307 के अंतर्गत दर्ज किया जाएगा.


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