आए दिन किसी न किसी जगह अलग-अलग तरह के हमले होते रहते हैं. जैसे हाल ही में 16 साल के एक हमलावर द्वारा आस्ट्रेलिया के एक चर्च में पादरी पर चाकू से हमला कर उसे मौत के घाट उतार दिया. इस घटना से पहले सिडनी में भी चाकूबाजी की एक घटना में 6 लोगों की मौत हो गई थी. वहींं हमारे देश में भी इस तरह के कई हमले होते रहते हैं. ऐसे में क्या आपने कभी सोचा है कि इस तरह के हमलों में आतंकवादी हमला कौन सा है ये कैसे पहचाना जाता है. चलिए जानते हैं.


कैसे तय किया जाता है कोई घटना आतंकी है या नहीं?
यदि कोई हमला होता है तो उसे आतंकवादी हमले के रूप में देखने या न देखने के कई कारक होते हैं. जिसमें सबसे पहला ये होता है कि यदि कोई आतंकवादी हमला हुआ है तो उसका उद्देश्य क्या हैै. वहीं दूसरी चीजें जो देखी जाती हैं वो ये होती हैं कि हिंसा में किसी तरह की धमकी दी गई है या नहीं या धमकी देकर कई लोगों में भय पैदा करने का काम किया गया है या नहीं.


इसके अलावा ये भी देखा जाता है कि जो हमला किया गया है वो पारंपरिक है या बहुत सोच समझकर उसका प्लान तैयार किया गया है. वहीं चौथा कारक ये देखा जाता है कि जिसने हमला किया है उसकी मंशा क्या है.


आतंकवाद को लेकर भारत में क्या है कानून?
समय-समय पर भारत सरकार द्वारा आतंकवाद के खिलाफ नियम या कानून बनाए जाते रहे हैं. इसी के तहत साल 1987 में आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम लाया गया था. जिसका उद्देश्य आतंकवाद के साथ-साथ संगठित अपराध से भी निपटना था. इस कानून के बाद टाडा और पोटा जैसे कानून भी लाए गए, जो काफी विवादों में रहे. वहीं टाडा में आतंकवाद की परिभाषा, संदिग्धों की गिरफ्तारी, जमानत, रिमांड इत्यादि के संबंध में विशेष तरह के प्रावधान किए गए थे.


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