Khushwant Singh Death Anniversary: जाने माने लेखक और पत्रकार खुशवंस सिंह का आज ही के दिन निधन हो गया था. वह भारतीय पत्रकारों और लेखकों में टॉप पर रहते थे. खुशवंत सिंह ने कंपनी ऑफ वूमन और ट्रेन टू पाकिस्तान जैसी बेस्ट सेलिंग किताबें लिखी हैं. उन्होंन तकरीबन 80 किताबें लिखी हैं. वो खुशवंत सिंह ही थे, जिन्होंने संता-बंता के किरदार से लोगों के चेहरे पर मुस्कान ला दी थी. खुशवंत सिंह 1983 तक दिल्ली के प्रमुख अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक भी रहे थे. आज उनकी डेथ एनिवर्सरी है, इस दौरान आज हम आपको उनसे जुड़ा एक किस्सा सुनाने जा रहे हैं.
अंग्रेजी अखबार के संपादक थे खुशवंत सिंह
खुशवंत सिंह तीन चीजों से बेहद प्यार करते थे, पहला अपनी दिल्ली, दूसरा लेखन और तीसरा खूबसूरत महिलाएं. वो खुद को दिल्ली का सबसे बड़ा यारबाज और दिलफेंक बूढ़ा मानते थे. वो बात-बात पर चुटकुले सुनाते और ठहाके लगाते थे. वो गंभीर लेखक, निहायत विनम्र और खुशदिल इंसान थे. उनमें एक खास कला थी, वो खुद की खिल्ली उड़ाने से कभी नहीं चूकते थे. बीबीसी की मानें तो उनके बारे में एक किस्सा मशहूर है, जब वो दिल्ली में हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक हुआ करते थे तो हमेशा मुड़े-तुड़े पान की पीक से सने पठान सूट में दफ्तर आते थे. उनके पास एक पुरानी खटारा एंबेसडर हुआ करती थी, जिसे वो खुद चलाते थे.
जब दो लड़कियों के बन गए टैक्सी ड्राइवर
उनका एक और किस्सा बड़ा मशहूर है, कि एक बार वो अपने दफ्तर की बिल्डिंग से अपनी कार से निकल रहे थे, तभी रास्ते में दो लड़कियों ने आवाज लगाई टैक्सी! टैक्सी! ताज होटल. वो कुछ बोलते उससे पहले ही दोनों लड़कियां उनकी गाड़ी में जाकर बैठ गईं. खुशवंत सिंह को समझ आ गया था कि वो दोनों लड़कियां उनको टैक्सी ड्राइवर मान चुकी हैं. हालांकि इसके बाद भी उन्होंने कोई बात न करते हुए लड़कियों को ताज होटल में छोड़ा और उनसे सात रुपये किराया भी वसूला, इसके बदले उनको दो रुपये टिप भी मिली.
वापस कर दिया था पद्म भूषण
खुशवंत सिंह को 1974 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. लेकिन 1984 में अमृतसर के स्वर्णं मंदिर में सेना के प्रवेश के विरोध में (ऑपरेशन ब्लू स्टार) उन्होंने यह सम्मान वापस कर दिया था. बाद में 2007 में उनको पद्म भूषण से नवाजा गया. जब देश में इंदिरा गांधी की सरकार थी उस वक्त उनको राज्यसभा के सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया था. इस दौरान 1980 से 1986 तक वह सांसद रहे. लाहौर हाईकोर्ट में उन्होंने कई साल वकालत की और 1947 में विदेश मंत्रालय में शामिल हो गए थे. 90 साल की उम्र में भी उन्होंने लिखना बंद नहीं किया था.