महिलाओं का होना कितना जरुरी है और वो कितना काम करती हैं ये सभी का समझ पाना मुश्किल है. कई लोग एक गृहणी के काम को मामूली मानते हैं तो कई कंपनियां पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को कम सैलरी देती हैं. ऐसे में कल्पना कीजिए कि एक दिन के लिए यदि किसी पूरे देश की महिलाएं काम करना ही बंद कर दें तो उस देश की क्या स्थिति होगी? दरअसल 40 साल पहले ऐसा हो चुका है, जिसका परिणाम कुछ ऐसा रहा कि आजतक इस देश को याद है.


इस देश की महिलाओं ने एक दिन के लिए काम से ले ली थी छुट्टी


कई बार हमें काम गिना दिए जाते हैं कि फलाना काम पुरुषों को है तो फलाना महिलाओं का. मसलन बाहर के काम पुरुष करेंगे तो घरेलु कामकाम महिलाओं की ही जिम्मेदारी होती है, लेकिन आइसलैंड एक ऐसा देश है जहां के कई बच्चे ये मानकर बड़े हुए कि राष्ट्रपित बनना महिलाओं का ही काम है.


बात 40 साल पहले की है. दिन 24 अक्टूबर 1975 का, ये दिन आइसलैंड को हमेशा याद रहेगा, क्योंकि इसी से आइसलैंड में महिलाओं के लिए नई सोच ने जन्म लिया. दरअसल इस दिन आइसलैंड में महिलाओं ने हड़ताल कर दी थी. ये हड़ताल ऐसी वैसी नहीं थी, बल्कि इस दिन इस पूरे देश की महिलाओं ने काम न करने का फैसला किया, न ही घर के काम न ही नौकरी और न ही कोई दूसरा काम. सभी महिलाएं प्रोटेस्ट के लिए बाहर निकल गईं. घर में बच्चों से लेकर हर काम पुरुषों को संभालना पड़ा. लिहाजा बैंक, कारखाने और कुछ दुकानें बंद करनी पड़ीं, साथ ही स्कूल और नर्सरी भी बंद करनी पड़ीं. इस दिन सॉस इतने बिके की दुकानों पर बचे ही नहीं. कुछ पिताओं के लिए बच्चों को संभालना इतना मुश्किल हो गया था कि इस दिन को एक और नाम दिया गया, लॉन्ग फ्राइडे.


रेडियो पर आ रही थी बच्चों की आवाज


कुछ कार्य ऐसे थे जिन्हें बंद करना संभव ही नहीं था. लिहाजा पुरुषों को काम पर बच्चों को लेकर जाना पड़ा. बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इस दौरान जब रेडियो पर समाचार पढ़े जा रहे थे, तब पीछे से बच्चों के खेलने की आवाज भी आ रही थी. इस दिन को नाम दिया गया थामहिला दिवस अवकाश’.


महिला दिवस अवकाश के बाद क्या हुआ?


आइसलैंड में महिला दिवस अवकाश के बाद देश को समझ आ गया कि महिलाओं की क्या महत्ता है. इसके बाद संसद से लेकर हर जगह महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिया गया.


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