BR Ambedkar: भारतीय संविधान के रचयिता बीआर अंबेडकर किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. बीआर अंबेडकर को अपने जमाने के सबसे विद्वान लोगों में गिना जाता है. इसके अलावा उन्होंने अपनी वकालत से काफी पहचान कमाई, लेकिन क्या आप जानते हैं जब वो वकालत करते हुए एक केस हार गए थे और वो भी यौन शिक्षा से जुड़ा... दरअसल एक बार बीआर अंबेडकर यौन शिक्षा से जुड़ा केस हार गए थे. इसके बाद बीआर अंबेडकर को 200 रुपये जुर्माना भी भरना पड़ा था.


रघुनाथ धोंडो कर्वे के लिए मसीहा बन कर सामने आए बीआर अंबेडकर


महाराष्ट्र के रघुनाथ धोंडो कर्वे अपनी पत्रिका “समाज स्वास्थ्य” के लिए रूढ़िवादियों के निशाने पर रहते थे. कर्वे अपनी पत्रिका में हमेशा ही यौन शिक्षा, परिवार नियोजन, नग्नता, नैतिकता जैसे उन विषयों पर लिखना पसंद करते थे, लेकिन तब भारत का समाजिक और राजनीतिक ढांचा इतना मजबूत नहीं था कि वो कर्वे का पक्ष ले सकता. और ऐसे में बाबा साहेब अंबेडकर कर्वे के लिए मसीहा बन कर सामने आए और उनके लिए अदालत में वकालत की.


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उच्च न्यायालय में कर्वे का केस लड़ने को तैयार थे बीआर अंबेडकर


सवाल सिर्फ हस्तमैथुन और समलैंगिकता के विषय में थे जिसका कर्वे ने खुलकर उत्तर दिया था. तब समाज में इस तरह की बातें करना अश्लील और हानि पहुंचाने वाला माना जाता था. लेकिन इस बार कर्वे अकेले नहीं थे. तब मुंबई के एक सधे हुए वकील बैरिस्टर बीआर अंबेडकर उच्च न्यायालय में उनके लिए लड़ने को तैयार थे. अगर “समाज स्वास्थ्य” का विषय यौन शिक्षा और यौन संबंध है और आम पाठक उसके विषय में प्रश्न पूछता है तो उसका उत्तर क्यों नहीं दिया जाना चाहिए. यह अंबेडकर का सीधा सवाल था. अगर कर्वे को इसका उत्तर नहीं देने दिया जाए तो इसका मतलब है पत्रिका को बंद कर दिया जाना चाहिए. 


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बीआर अंबेडकर का मानना था कि कि यदि लोगों में इस तरह की भी इच्छा होती है तो इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है. उन्हें अपने तरीक़े से खुशी हासिल करने का अधिकार है.


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