घड़ियों का आविष्कार 15वीं शताब्दी के आसपास शुरू हुआ. लेकिन, इंसान उससे कई सौ साल पहले से समय को समझता आया था. यानी उसे कई सौ साल पहले पता था कि दिन में कब कितने बज रहे हैं.


चलिए आज आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं कि इंसान को कब ज्ञान हुआ कि वह सूरज और चांद के जरिए समय का पता लगा सकता है. इसके साथ ही आपको ये भी बताएंगे कि क्या इंसानों के पास समय को मापने के लिए चांद, सूरज और तारे ही थे या इसके लिए कोई और जुगाड़ था.


सूरज की छाया से घड़ी


ये तकनीक भारत की थी. भारत में सूर्य की छाया को देख कर समय की गणना की जाती थी. हजारों वर्षों तक भारतीय विद्वानों ने सूरज की छाया को अपनी घड़ी बनाया और इसी माध्यम से वह पहर निर्धारित करते थे. जबकि, रात में समय का अंदाजा लगाने के लिए वह लोग चांद और तारों पर निर्भर रहते थे.


पानी वाली घड़ी


भारत जहां सूरज, चांद और तारों के माध्यम से समय की गणना करता था. वहीं, लगभग दो हजार साल पहले प्राचीन यूनान के लोग पानी से चलने वाली घड़ियों का इस्तेमाल करते थे. यह घड़ियां एक प्रकार से अलार्म घड़ियां थीं.  बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, इन घड़ियों में पानी के गिरते स्तर के साथ तय समय बाद घंटी बज जाती थी. इससे पता चल जाता था कि कब क्या समय हुआ है.


पेड़, पौधे और पक्षी भी थे घड़ी


सूरज, चांद और तारों के अलावा पौधों और जीव-जंतुओं की गतिविधियां भी समय की गणना में मुख्य भूमिका निभाती थीं. आज से हजारों वर्ष पहले कई ऐसे लोग थे जो पौधों पर फूल के खिलने और पत्तियों के झड़ने का समय देखकर मौसम और समय का अनुमान लगाते थे. इसके अलावा कुछ लोग पक्षियों की गतिविधियां और उनके चहचहाने से भी समय का पता लगा लेते थे. आज के दौर में भी कई ऐसे लोग हैं जो इन तरकीबों से समय और मौसम का पता लगा लेते हैं.


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